श्रद्धांजलि – मुक्तकों के संग
कोकिली कंठी गायिका,छोड़ गई,हम दीन।
ऐसा स्वर अब है कहाँ,कौन बजाए बीन।
बिलख रहा संगीत है,श्रोता सब हैं मूक,
मातम है पसरा हुआ,हम सारे ग़मगीन।।
नाम लता था,जान लें,जो थीं इक उपहार।
सदियों में पाता कभी,वर ऐसा संसार।।
मातु शारदे रूप थीं,वीणा की झंकार,
ताल,वाद्य सब उर बसे,हर लय थी साकार।।
बनकर भारत की रतन,बनीं सदा सिरमौर।
गूँजी स्वरलहरी सतत,कोई भी हो दौर।
ऐसी वाणी,सौम्यता,थी वंदन के योग्य,
जिसमें कोयल कूकती,नहीं रहा वह ठौर।।
हर दिल पर करती रहीं,दीदी जी तो राज।
युग-युग गूँजेगी ‘शरद’,उनकी मधु आवाज़।
युग मानो अब मूक है,गूँगे सारे लोग,
वह हस्ती अब जा चुकी,था जिस पर तो नाज़।।
श्रद्धामय प्रस्तुत नमन,भाव भरा है लोक।
अब बस वीराना बचा,आँसू झरते थोक।
अंधकार अब शेष है,चला गया उजियार,
नहीं रहीं दीदी लता,बिखरा है अब शोक।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे