बहते आंसू
कितना कोमल है अंग तेरा,
अपनी आंख में संजोए रखा हूं।
दूर न जा मुझसे अब तू,
मैं तेरे लिए यूं ही तड़पता हूं।।
खिली हुई मेरी आंख में ,
सीप का मोती बनकर रहता है।
तेरे लिए मैं पल पल यूं ही,
अपनी पलकों से ढक कर रखता हूं।
तेरा यह संसार है ,
तो क्यों दूर जा रहा है।।
दर्द हुआ है हृदय में मेरे,
तो क्यों तो क्यों रास्ता बदल रहा है
यह तो बता मुझे भी ,
तुझ पर क्या सितम हुआ है ।।
मोती बनकर वास,किया है ,
सागर बनकर ढकने लगा है ।
दूर न जा अब तू रे ,
मेरा मन भी विचलित होने लगा है ।।
नम करकेआँख मेरी,
खुद को बाहर जलने चला है।
साथ छोड़ कर मेरा तू ,
अपना घर छोड़ चला है ।।
आ जा मेरे पास ही ,
तू क्यों मुझसे दूर चला ।।
— अशोक कुमार