ग़ज़ल
मधुर चाँदनी रात लिक्खी नहीं है
हमारी मुलाक़ात लिक्खी नहीं है
सुयश ज़िंदगी क्यों नहीं कर्मफल में
करो मत सवालात लिक्खी नहीं है
तुझे ख़ुश्क सहरा फ़क़त चंद बूँदें !
घटाटोप बरसात लिक्खी नहीं है
यहाँ प्यार ही बारहा हारता है
यहाँ ज़ुल्म को मात लिक्खी नहीं है
यहाँ दर्ज हमलावरी ही हमारी
तुम्हारी ख़ुराफ़ात लिक्खी नहीं है
सिवा एक ही पक्ष की सदबयानी
किसी और की बात लिक्खी नहीं है
सभी के लिए सिर्फ़ केशव शरण हूँ
इसी बात से जात लिक्खी नहीं है
— केशव शरण