तुम्हारा ख्याल और ये मौसम
मन के बगीचे में जब जब भी
मैं कविताएं लिखने जाता हूं
सारे मौसम मेरे अगल-बगल
मुझे कविताएं लिखते हुए निहारा करते हैं
तुम्हारा ख्याल आते ही
बसंत फूलों की बारात लेकर आ जाता है
तुम्हारे मिलन के वे लम्हे
ज़हन में खुशबू से भर उठते हैं
मैं खुद को तन मन से महका महका महसूसने लगता हूं
फिर ख्याल आता बसंत चला जाता
उफ्फ गर्मी बदन तपने लगता
धुआं धुआं ख्वाब और मैं तन्हा तन्हा
भीतर ही भीतर जलने लगता
देखते ही देखते बरसात की बूंदे
ज़हन से होती हुईं
आंखों की तहों से बाहर अश्क बनकर
टपकने लगतीं
आंसुओं की नमकीन बरसात में ।
धुआं धुआं ख़्वाबों की चिंगारियां
आंसुओं से लिपटकर
विलीन होने लगतीं
अश्क धुआं और चिंगारियां मेरी कविता को
और धार देने लगते ।
चेहरे पर उभरी रंगत मौसमों की मार से
फीकी होने लगती तो
पतझड़ अपने लाव लश्कर के साथ
बगल में खड़ा मुझे चेताता डराता
खड़ खड़ गिरते हुए पीले पत्ते मुझे बेचैन करते ।
मेरी कविता में से भी वासंती रंग
उड़ने लगता
तुम्हारी याद फिर एक बार
युगों की यात्रा के लिए मुझे
उकसाने लगती ।
फिर पहाड़ों पर बर्फ गिरने लगती
मैं देखता सारे मौसम मेरी कविता को पढ़ते
और मैं बैठा बैठा
खुद बर्फ होने लगता हूं ।
जब भी मैं कविता लिखने
ज़हन के बगीचे में जाता हूं
सारे मौसम मेरे अगल बगल मुझे
कविताएं लिखते हुए निहारा करते हैं ।।
— अशोक दर्द