लेख

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस : आज लैंगिक समानता की बात करे!

राधा बड़ी हसरतो से अपने छोटे भाई को हर रोज़ सफ़ेद कमीज और खाकी निकर पहने, गले में बस्ता लटकाये स्कूल जाते हुए देखती है। उसने भी चाहा की वो अपने भाई कि तरह स्कूल जाये और बड़ी हो कर गांव की डिस्पेंसरी की डॉक्टर दीदी की तरह डॉक्टर बने। भाई जब स्कूल से आता तो वो चोरी छिपे उसकी किताब उठा कर पड़ने की कोशिश करती, पर उसके लिए तो काला अक्षर भैंस के बराबर था। वो तस्वीरें देख कर मन बेहला लेती। जब कभी उसकी माँ उसे हाथ में किताब लिए देखती तो चिल्ला कर कहती, ‘ अरी जनमजलि, तू यहाँ मरी पड़ी है, काम तुम्हरा बाप करेगा। इसी गली गलौच के माहौल में राधा बड़ी हुई।

पांच बहनो और सबसे छोटे भाई की वो सबसे बड़ी बहन थी। गरीबी इतनी की कई बार प्याज के साथ दो रोटी के साथ ही एक वक़्त का खाना और दो घूँट चाय या पानी के साथ ही गुजारा करना पड़ता। जब वो अकेली थी तो उसे दूध पीने को मिलता था पर जब से उसकी चार बहने और उसका भाई पैदा हुये तो दूध तो क्या उसे दो वक़्त की रोटी भी नहीं मिलती। पर भाई को तो दूध और दाल सब्ज़ी, सब कुछ मिलती है। जिस दिन बापू को साहूकार पैसा देता उस दिन रोटी के साथ सबको सब्ज़ी मिलती।

पर वो हसीन सपने देखना न बंद करती, आखिर सपनो पर किसी का बस चलता है क्या ?

वक़्त बीतता गया। सरकार बदली और नई सरकार ने न्यूतम वेज बिल और 16 वर्ष तक की कन्यायों के लिए 1000 रुपए महीना और मुफ्त शिक्ष से दिनु के परिवार की काया पलट गई। राधा और उसकी बहनो को स्कूल में दाखिल करा दिया गया । अब हर रोज़ घर में दाल सब्ज़ी के साथ तीन वक़्त की रोटी और बच्चो को पीने के लिए दूध मिलता। राधा की माँ की भी सेहत पहले से बेहतर होने लगी।

राधा ने गांव के स्कूल से दसवीं में ज़िले में शीर्ष स्थान पर रही।

घर में राधा की शादी की बात चलने लगी।

राधा की माँ कहती, ” लडकियों को पढ़ाई कर के कौन सा डीसी बनना है ? आखिर ससुराल जा कर रसोईं ही तो संभालनी है और बच्चो की परवरिश करनी है। ”

” पर माँ, अब तो ज़माना बदल गया है, लड़किया हर क्षेत्र में लड़को के समान डॉक्टर, वकील, इंजीनियर और जज बन रही है। वो किसी से कम नहीं। क्या वो नौकरी के साथ घर नहीं संभालती ? डॉक्टर दीदी को देखो , हमारे स्कूल की मुख्याध्यापिका भी तो औरत ही है। क्या वो अपने परिवार की सेवा नहीं करती ? माँ अपनी पुरानी सोच को बदलो, ज़माना बदल रहा है। ”

राधा की माँ ने सोचा, बिटिया तो ठीक ही कह रही है।

राधा को मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला। उसकी पढ़ाई का सारा खर्च सरकार ने उसके ज़िले में दसवीं कक्षा में प्रथम आ कर नया रिकॉर्ड बनाने वाली पहली छात्रा होने के कारण उसे विशेष छात्रवृति देकर उसकी पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा वाहन किया।

राधा का सपना पूरा हो गया। वो डॉक्टर बन गई।

आज राधा की तरह हर क्षेत्र में महिलायें पुरषो की बराबरी, कन्धा मिलाकर कर देश का नाम रोशन कर रही है। सरकार कई योजनओं के तहत महिलियों को सेहत, शिक्षा और रोज़गार के अवसर प्रदान कर रही है। हर वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम सब अपने घर, समाज और देश की महिलाओं का शुक्रिया अदा करते है और उनके लिए हर चुनौती का सामना करने के लिए प्रेरणा देते है। इस वर्ष हम सब मिलकर महिलयों के कल के लिए आज लैंगिक समानता की बात करे और उन्हें हर क्षेत्र में अवसर प्रदान करने का संकल्प ले।

-डॉक्टर अश्वनी कुमार मल्होत्रा

डॉ. अश्वनी कुमार मल्होत्रा

मेरी आयु 66 वर्ष है । मैंने 1980 में रांची यूनीवर्सिटी से एमबीबीएस किया। एक साल की नौकरी के बाद मैंने कुछ निजी अस्पतालों में इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम किया। 1983 में मैंने पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज में बतौर मेडिकल ऑफिसर ज्वाइन किया और 2012 में सीनियर मेडिकल ऑफिसर के पद से रिटायर हुआ। रिटायरमेंट के बाद मैनें लुधियाना के ओसवाल अस्पताल में और बाद में एक वृद्धाश्रम में काम किया। मैं विभिन्न प्रकाशनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी में लेख लिख रहा हूं, जैसे द इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदुस्तान टाइम्स, डेली पोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया, वॉवन'स एरा ,अलाइव और दैनिक जागरण। मेरे अन्य शौक हैं पढ़ना, संगीत, पर्यटन और डाक टिकट तथा सिक्के और नोटों का संग्रह । अब मैं एक सेवानिवृत्त जीवन जी रहा हूं और लुधियाना में अपनी पत्नी के साथ रह रहा हूं। हमारी दो बेटियों की शादी हो चुकी है।