दर्दे ए दिल
दर्दे ए दिल कोई इश्तहार नहीं
जो अखबारों में छपवाया जाएं
यह वो दर्द है
जिसे सीने में ही दफन रखा जाए
किसको फुर्सत है
तमाम इश्तहारों के बीच
तुम्हारें इश्तहार को पढ़ने की
तुम्हारा इश्तहार तो
अखबार के किसी कोने में
सिसकता पड़ा होगा
माल तो वही बिकता है
जो लुभावना हो
और एक के साथ एक
फ्री मिलता हो