कविता

अपने पराये

अपने पराये
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न कोई अपना, न ही पराया
जैसे मन के भाव हों
वैसा ही होते अपने पराये।
अपने पराए बनाए नहीं जाते
स्वतः बनते जाते है
जैसा हम अपने व्यवहार से बनाते हैं।
अपने पराये का न विचार कीजिये
सबसे सम व्यवहार कीजिये,
अपने पराये के बीच न उलझिए
न ही किसी को उलझाइए।
ऐसा कुछ आओ करें हम सबलं
कि अपने पराये का विचार
किसी के भी मन मेंं न आये
अपने हों या पराये
सभी सबके काम आयें,
सब सबके मन को भायें।

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921