कविता

मित्र

मित्र अमित्र में भेद करना
बड़ा कठिन हो रहा है,
मित्र ही अब मित्र से घात कर रहा है।
मित्रता कीजिये मगर सावधानी से
मित्रता की आड़ में धोखा मिले
बस थोड़ा सतर्क रहिए।
हाथों की ऊँगलियों को तरह
सब एक से नहीं हो सकते
पर कौन धोखा दे जायेगा
मित्रता की आड़ में,
मित्रता कीजिये मगर संँभलकर
मित्रता की छाँव में दुश्मन से
जरा बचकर रहिए।
समय के साथ मित्रता पर भी
अविश्वास का साया घना हो रहा है,
फिर भी मित्र के बिना
जीवन नहीं चल पाता है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921