धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

रेत के महलों में रहने वालो घमंड काहे का

समूचा संसार भौतिकतावाद में पूर्णतः संलिप्त है । बिन समझे एक दूसरों से आगे निकल जाने की एक अजीब सी होड़ लगी है । प्रतियोगिता महज एक नाम है । प्रतियोगिता में भी ईष्या ने घिनौना रुप अख्तियार कर लिया है । अपना लाभ हो न हो पर दूसरों की उन्नति उन्हें फूटी कौड़ी भी नहीं सुहाती । यह कैसा घटिया जमाना आ गया है ।
जमीन, जोरु व धन के कारण हर रोज़ मार-कुटाई, लडाई -झगड़ा, हत्या एवं अवैध संबंधों से पवित्र रिश्तों में विखराव आ रहा है । रिश्ते टूट रहें हैं । नि:सन्देह मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक का काला कानून खत्म हो चला है  । इससे मुस्लिम औरतों का नरकमय जीवन सुखद बनने जा रहा है। पर हमारे समाज में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है । बहुत ही विस्फोटक जन्य परिस्थितियाँ प्रतिदिन हमारे समाज की भयावह चित्र प्रस्तुत कर रहीं । समय ऐसा भयानक आ गया है कि कोई भी लडकी अपने पति से खुश नहीं और लडके भी अपनी नव विवाहित पत्नियों से कहाँ सन्तुष्ट हैं ?  बेशक ये प्रेम विवाह के बंधन में बंधे हो । बस, विवाह के एक-दो महीनों के भीतर विवाह -विच्छेद की नौबत तक आ रही है । संयम का अभाव, एक-दूसरों की भावनाओं का सम्मान न करना । आपसी तालमेल की बेहद कमी देखने को मिल रही है । दरअसल, अहं की भावना ही दोनों पक्षों के तारतम्य में आड़े आ रही है । विदेशी लिबास, विदेशी साजो-सामान, सब कुछ विदेशी । स्वदेशी जागरण की बेहद कमी है । थोडा ही नहीं बिल्कुल समूचा ढांचा ही बिगड़ता प्रतीत हो रहा है ।
लालच, लोभ, अधिक धन को एकत्रित करने की भावना एवं प्रबल आकांक्षाओं के कारण समाज का वीभत्स रुप हमारी मानसिक बुद्धि को भ्रष्ट करता जा रहा है । इन विकृतियों पर शीघ्रतिशीघ्र अंकुश लगाना होगा । पुरातन छोड़कर नवीनतम का लिबास पहन लेने से समाज बदलने वाला नहीं है । चाँद को पाना तो चाहते हो पर चाँद पर थूंकने का क्या मतलब ।
मुंठी में आई रेत फिसल जाएगी । रेत के महल बना कथित स्वप्न लेने वालों ऐसे आपका उद्धार नहीं होने वाला । शीशों के महलों में रहने वाले भी कहाँ समझते हैं  । दूसरों को पत्थर मारने से नहीं हटे तो समझ लो इनकी परिणति क्या होगी ? आपको भी पत्थर तो लगेगा ही । तो संभल जाओ । अमीरी -गरीबी का खेल सदियों से चलता आया है । मत किसी का दिल दुखा । मत किसी की आह तूं ले  प्राणी ।
हम लोग आध्यात्मिकता को भूल  चुके है । भौतिक सुख-साधनों में सुख खोजने का प्रयास कर रहें हैं । धार्मिक स्थलों में भी खुशी एवं शान्ति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं । भद्रजनों ! क्या मिलेगा आपको सुख ?  शान्ति तो बहुत दूर की बात है ?  दरअसल, प्रत्येक इन्सान इन्हीं सच्ची -झूठी बातों में ही उलझा हुआ है  । ऐसे में उसकी भटकन और बढ़ती है ।
पैदल चलता इन्सान अपनी ही मौज में अकेला चलता चला जाता है । वह किसी की परवाह नहीं करता  पर दूसरी ओर साईकल चलाने वाला गाड़ी की चाहत रखता है । फिर वही व्यक्ति इच्छाओं का गुलाम बन अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता है । बताओ रेत के महलों में रहने वालो काहे का घमंड करते हो?
इतनी बडी़ -बडी़ ऊंची इमारतें बनाने वालों!  आपने रहना कितने कमरों में हैं । सिर्फ एक कमरे में ही सोना है । चपातियां खानी दो । अत: धन -दौलत इकट्ठी करने का क्या औचित्य ? आपके पास पहले से ही अकूत सम्पत्ति है । जमीन -जायदाद का तो हिसाब -किताब ही नहीं । यह तो सर्वविदित ही है कि – ” धरती धन न अपना । ” फिर किस बात का हो- हल्ला  ।
ये कोठियां, महल व. चौबारे सब यहीं के यहीं धरे रह जाएंगे । एक तेज हवाओं का झोंका यानि भूकम्प, एक तेज ऊंची सागर में लहर यानि तूफान प्रलय ला सकती है । हमारे चहुँओर सब कुछ अच्छा नहीं हो रहा । परमात्मा कण-कण में है विद्यवान है । हर समय प्रभु सिमरन करो अन्यथा सृष्टि कभी भी पलटा सकती है । विडंबना है अगर हम ही नहीं रहेंगें तो रेत के महल ( हमारा अस्थायी घर ) भी किस के काम आएंगे ।
वस्तुतः रेत के महल की भान्ति यह शरीर भी हमारा नहीं । हम तो इस संसार में अपना -अपना रोल अदा करने आए हैं । अपना रोल अदा कर लौट जाएंगे । इसलिए कलाकारी तो उत्कृष्ट होनी चाहिए । ये समस्त सांसारिक वस्तुओं का मोह छोड़कर वास्तविक जीवन जिएं ।

— वीरेन्द्र शर्मा

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333