अल्हड़पन
क्यों डरती हो सखी
थोड़े केश ही तो है पके
क्या हुआ जो कदम थोड़े से हैं थके
उम्र का हर दौर हंसी
जियो इसे हंसी खुशी
किसका डर है तुम्हें
बेवक्त मुस्कुराओ
खुद को थोड़ा गुदगुदाओ
हम सब यह तो करना चाहे
पर रुक जाते ना जाने किसी बहाने
कोई हमारा क्या बिगाड़े
क्या आ जाती हमारे आड़े
बेवक्त नाचो गाओ
बच्चों की तरह खिलखिलाओ
पानी में छपाक से एक कूद लगाओ
छूने दो बारिश की बूंदों को तुम्हें
भर लो आंचल में बारिश का पानी
जी के देखो यही है जिंदगानी
तुम अपनी उम्र का दायरा मत करो तय
बस अपनी मस्ती करो निश्चित
और है भी तो यही उचित
अधपके केशों में भी लगोगी हसीन
जियो हर एक पल
बीता कल आता क्या कभी
हंसो खिल खिलाओ
भिगो बारिश में तन मन भिगाओ
बेबसी को बीच में ना लाओ
मत सकुचाओ सखी
मिलती है एक बार जिंदगी|
— सविता सिंह मीरा