स्वारथ के रिश्ते-नाते
प्रेम सने दो बोल कबीरा।
होते हैं अनमोल कबीरा।।
दुखी-उदासी की बेला में।
देते चीनी घोल कबीरा।।
बिछड़े संगी मिल जाते हैं।
धरती बिल्कुल गोल कबीरा।।
स्वारथ के सब रिश्ते-नाते।
अब तो आंखें खोल कबीरा।।
वाणी से मोती, युद्ध यहां।
जिह्वा अपनी तोल कबीरा।।
कंगूरों की चमक न देखो।
नींव खोखली, पोल कबीरा।।
मानवता की आंखें सूनी।
बजा युद्ध का ढोल कबीरा।।
— प्रमोद दीक्षित मलय