उम्मीदें
देखते ही देखते हम बूढ़े हो जाते हैं
बच्चें जवान हो बाप बन जाते हैं
फिर एक सिलसिला शुरू होता है
खुली आंखों से सपने देखने का
उम्मीदों का
बनती बिगड़ती उम्मीदों का
टूटते बिखरते सपनों का
और इन्ही के बीच गुजरते हुए
एक दिन हम मुक्त हो जाते हैं
इन तमाम बनती बिगड़ती उम्मीदों से