मुक्तक/दोहा

हमने भी सीखा- 18

मुक्तक

मुस्कुराता रहा मुसलसल
ताकि संभावना न रहे
तुझ पर
बेवफाई की आंच आने की

तुमसे मिलने की चाहत बहुत है
दिल में तुम्हारी तस्वीरों की
इनायत बहुत है
मिल न सको तो भी
तेरे होने के एहसास से राहत बहुत है

खुशी आत्मा का स्वास्थ्य है
जमाने से सुनते आए हैं मुसलसल
खुशी ने डेरा नहीं डाला आत्मा में
इसी लिए सम्भवतः रहते हैं अस्वस्थ और बेकल

 

 

 

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “हमने भी सीखा- 18

  • *चंचल जैन

    आदरणीय लीला दीदी, सादर प्रणाम। बहुत खूब। सही कहा आपने, ख़ुशी आत्मा का स्वास्थ्य हैं। सादर

    • *लीला तिवानी

      चंचल जी, आपको “हमने भी सीखा- 18” ब्लॉग बहुत अच्छा लगा, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. “ख़ुशी आत्मा का स्वास्थ्य है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन.

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