पहुंच
प्रेरणा ने लिखा था- “आपकी भावनाओं और श्रदांजलि की पहुंच मेरे पापा तक जरूर हो गई होगी.”
“भावनाओं और श्रद्धांजलि की पहुंच बहुत दूर-दूर तक होती है.” प्रेरणा के जवाब में मैंने लिखा था.
प्रेरणा से इस संवाद ने हमें 35 साल पीछे पहुंचा दिया.
“आज कोई नया भजन लिखा है?” सखी निर्मला ने पूछा था.
“एक भजन लिखा तो है: “माता की आशीष”.
“सुना दे.”
मैं भजन गाती गई, निर्मला रोमांचित होती रही.
“मैं इस भजन को लिख लेती हूं, रोज सुबह बेटे को जगाने के लिए गाया करूंगी.”
निर्मला की बात सुनकर मैंने तुरंत उसे भजन लिखकर दे दिया, पर यह भी सोचने लगी कि निर्मला तो दिल्ली में रहती है, बेटा बंगलौर में इंजीनियरिंग कर रहा है, वह कैसे रोज सुबह बेटे को जगाने के लिए गाया करेगी!
निर्मला ने तुरंत ऐसा करना शुरु भी कर दिया.
“ममी, आजकल आप रोज सुबह 6 बजे कुछ खास कर रही हैं क्या?” 3-4 दिन बाद ही उसके बेटे दीपक ने फोन पर मां से पूछा था.
“बेटा, ऐसा है कि मेरी एक सहेली ने अपने छोटे-छोटे बच्चों को सुबह सलीके से जगाने के लिए एक भजन ”माता की आशीष” लिखा है. मुझे यह भजन इतना अच्छा लगा, कि मैंने उसे नोट कर लिया है और रोज सुबह 6 बजे गाती हूं. तुम्हारा सुबह उठने का 6 बजे का अलॉर्म लगा हुआ है न! कोई खास बात!”
“ममी, उस समय बड़ा अच्छा लगता है. ऐसा लगता है जैसे प्यार भरी थपकियां देकर आप मुझे उठा रही हों. अगली बार चिट्ठी में यह भजन लिखकर भेजिएगा.”
स्नेह-ममता-श्रद्धा भरी उस आशीष ने ही उसे निरंतर प्रगति की चोटी पर आरोहित किया था. उस भजन वाला वह कागज़ आज भी दीपक के पास सुरक्षित रखा हुआ है. उसे देखकर 35 साल पहले की बात से उसे अपनी माता के आशीष-सा सुकून महसूस होता है.
निर्मला के विश्वास ने जता दिया, कि आशीर्वाद, भावनाओं और श्रद्धांजलि की पहुंच बहुत दूर-दूर तक होती है.
श्री शंकराचार्य के अनुसार श्रद्धा वह है जिसके द्वारा मनुष्य शास्त्र एवं आचार्य द्वारा दिये गये उपदेश से तत्त्व का यथावत् ज्ञान प्राप्त कर सकता है।तत्पर आत्मविकास के किसी भी मार्ग पर अग्रसर साधक के लिये आवश्यक है कि वह उस मार्ग की ओर पूर्ण ध्यान दे तथा मन में ईश्वर का स्मरण रखे। श्रद्धा और विश्वास से मनवांछित फल भी प्राप्त किया जा सकता है.