लघुकथा

बहन की अहमियत

पहली बार जब रीना ने ऋषभ के पैर छुए तो उसके आँखों में भरे आँसुओं ने उसे हिला दिया। उसने उसके सिर पर हाथ रख दिया।
रीना बिना किसी संकोच उससे लिपट कर रो पड़ी, जैसे अपना सारा दर्द आँसुओं के माध्यम से उसे सुना देना चाहती हो।
ऋषभ ने उसके आँसू पोंछ सांत्वना देने का प्रयास किया, मगर असफल रहा, क्योंकि ऐसा करते हुए उसके आँसू भी बेवफाई पर उतर आये।
रीना यह देख तड़प उठी। उसके आँसू पोंछते हुए- नहीं भाई! आप मत रोइए।
फीकी मुस्कान से ऋषभ ने उसे छेड़ा। मैं क्यों रोऊंगा। पागल लड़की खुद रो रही है और मुझे समझा रही है।
मानती हूं भाई पर मैं आपको देखकर खुद को रोक न सकी। मुझे ऐसा लगा कि मेरा भाई लौट आया हो। रीना की आवाज ढर्रा गई।
भाई आपकी बहुत तारीफ करते थे और आज जब आप घर आये तो आपका यार दुनिया में नहीं रहा। जानते हैं भाई हमेशा कहा करते थे कि तू दो भाइयों की अकेली बहन है। कभी मैं नहीं भी रहा, तो भी मेरा भाई, मेरा यार मेरे जैसा ही तेरा ध्यान रखेगा। यह कैसी विडंबना है कि एक भाई मिला भी तो एक बिछड़ गया। कहते हुए रो पड़ी रीना।
बस! अब कुछ मत बोलना। मेरा यार मेरा नहीं, वो मर ही नहीं सकता। ध्यान से मुझे देख तेरा भाई तुझे जरुर मिलेगा।
हां भाई। मैं भी यही सोचती हूं कि मेरा भाई कभी मर नहीं सकता ,वो तो विश्राम कर रहा है। आपके रुप में हमेशा मेरे साथ है।
ऋषभ ने रीना को अपने बांहों में समेट लिया। जैसे वो नन्हीं मुन्नी बच्ची हो।
आज ऋषभ को बहन की अहमियत समझ में आ रही थी।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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