ग़ज़ल
चांद हमारा ग़म न करना
उम्मीदों को कम न करना।
चाहे कैसी भी हो मुश्किलें
हौसलों का दामन थामे रखना।
माना बहुत गहरा है अंधेरा
उम्मीदों के चरागो को जलाए रखना।
मुझसे तुम हो जाओ अजनबी
अपने दिल में मेरे लिए थोड़ी जगह रखना।
रोते-रोते कटी हो चाहे रात तुम्हारी
होठों पे फिर भी हंसी रखना।
शबनम के चंद कतरो के खातिर
लान में थोड़ी घास उगाए रखना।
आती रही ठंडी-ठंडी हवाओं के झोंके
अपने कमरे खिड़की थोड़ी खुली रखना।
माना तुम से जुदा हो गई राहें मेरी
उन राहों पर अपने कदमों के निशा रखना।
— विभा कुमारी “नीरजा”