कविता

माँ तो माँ ही रहेगी

 

आज मातृदिवस है
आज हम सब बड़ी श्रृद्धा से
माँ की शान में कसीदे पढ़ते हैं,
शायद अपने पापों का बोझ उतारते हैं,
क्योंकि हम विडंबनावादी जो हो गये हैं।
बड़ा कड़ुआ है पर सच भी तो है
इसे भी स्वीकार कीजिए
माँ को प्यार कीजिए न कीजिए
सब चल ही जायेगा,
बस! सोशल मीडिया पर
अपने श्रवण कुमार होने का खूब प्रचार कीजिए।
धरातल पर मां के अपमान उपेक्षा और
दुर्व्यवहार भला कौन देखता है,
अपनी सुख सुविधा के लिए
माँ को वृद्धाश्रम भेज दीजिए,
बेकार में बुढ़िया का बोझ न सिर पर लीजिए,
आधुनिकता की चाल ढाल में
खूब अच्छे से ढल जाइए।
माँ तो माँ ही है आपकी माँ ही रहेगी
माँ होने का हक अब छीन भी कहाँ पायेगी
बहुत होगा तो रोयेगी, पछताएगी
घुट घुटकर जीते हुए आँसू बहाएगी
और एक दिन आपकी माँ
दुनिया को अलविदा कह जायेगी।
आपके दिल में रहे न रहे
पर आपकी औपचारिक सेल्फियों में
जरुर बच जायेगी,
मातृदिवस पर सोशल मीडिया में
आपके श्रवण कुमार वाली छवि
बनाने के काम तो जरूर आयेगी,
माँ तो आपकी माँ आपकी ही कहलाएगी
सेवा, सम्मान उसे भले नसीब न हो
पर सच मानिए प्रचार बहुत पायेगी,
हर कष्ट पीड़ा सहकर भी
आज तो बहुत मुस्कुराएगी,
आपकी बलाइँया लेगी और
आपकी माँ होने के घमंड में फूली नहीं समायेगी
अगले वर्ष मातृदिवस के इंतजार में
कुम्हलाएगी या फिर मर जायेगी
पर आपको आशीष जरुर दे जायेगी।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921