बढ़ती गरमी
लगती गरमी बढ़ती धूप।
सूख रहें सब नदियाँ कूप।।
पक्षी करते जल की आस।
गला सूखते लगती प्यास।।
इधर उधर सब भटके रोज।
पानी का करते हैं खोज।।
छत पर ढूँढे चिड़िया नीर।
नहीं मिले तब होवे पीर।।
चिड़िया कैसे प्यास बुझाय।।
तड़प-तड़प कर वो मर जाय।
आओ सभी बढ़ाये हाथ।
देंगे मिलकर इनका साथ।।
छत पर पानी रखना रोज।
चाँवल दाना सुंदर भोज।।
चट कर जाये सारे अन्न।
पी कर पानी सभी प्रसन्न।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”