बहुत लुट चुके हम
बहुत लुट चुके हम – मुहब्बत के इल खेल में
मंज़र अपनी बरबादी का – हमसे देखा नहीं जाता
थक गये हैं हम – राह आपकी देखते देखते
इंतज़ार अब आपका – हम से किया नहीं जाता
अकेले अब हमसे – उठता नहीं बोझ ज़िंदगी का
कट जाती आराम से ज़िंदगी – साथ आपका अगर मिल जाता
ग़ौर मत कीजिये हमारे – नादान दल की नादानी पर
बिछड कर आपसे – अब हमसे इस दुनिया में रहा नही जाता
रहना ही इस मै खाने की – कभी भी कम नही होती
अगर होती शराब सुराही में – तो पैमाना खाली नहीं होता
शमा तो यूं ही बदनाम नहीं – इन परवानों की मौत के लिये
जलती ही ना अगर शमा – तो परवाना कोई भी कभी जला ना होता
ज़िद करते ना कभी भी हम – बीच दरिया में जाने की मदन
नज़ारा लहरों का अगर हमें – साहिल से दिखा दिया होता
लाकर किनारे पर हम को – डुबो दिया हमारी ज़िंदगी ने
डूब जाते अगर हम मँझदार में – तो गिला हमको नहीं होता