कविता

मुक्ति

मन मेरा वैरागी हो चला
ये तो अब वितरागी  हो चला
न जाने किस ओर चला
लालसाओ ने ली विदाई
इच्छा ने भी दामन छुड़ाई
झूठ सच ने अपनी असली शक्ल दिखाई
भ्रम की बदली के बीच
ज्ञान की किरणें नजर आई
मोहमाया दुनियादारी
सब ने बस दौड़ लगाई
बरसों की भट्टी जिंदगी को
मुक्ति की राह नजर आई।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P