ग़ज़ल
तू अकेले कि काफ़िले में चल
मत ठहर बीच रास्ते में, चल
आज का दिन उदास बीता है
आज की शाम मयकदे में चल
ये सही साथ-साथ चलते हम
दो तटों के न फ़ासले में चल
थामता और फिर झटकता हाथ
प्यार के एक सिलसिले में चल
प्यार की दिल-दुकान बंद न हो
क्या ज़रूरी कि फ़ायदे में चल
लद नहीं पीठ पर किसी के तू
तू किसी के न पाँयचे में चल
रास्ते और मंज़िलें अपनी
सोच ले और फिर मज़े में चल
— केशव शरण