कविता

बरखा बरसात

नभ पर आई बदरा की बारात
सावन में छाई है ये दिन   रात
प्रकृति ने दी धरातल को सौगात
लो आ गई बरखा    बरसात

ताल तलैया भये खुशहाल
नदियों में आई है मधुमास
कृषक के मन हर्षित है आज
खेती की सज गई अब ताज

हवायें झूम रही है चहुँओर
दिखा रही है पेड़ों पे जोर
बूँदें गिर रही है झर झर सब ओर
वन मयूर नाचे है मेघ घनघोर

चारों ओर घटा है छाई
बूंदों की फुहार सजाई
सवन भादो माह कहलाई
प्यासी धरती प्यास बुझाई

रिमझिम रिमझिम वर्षा आई
सुहाना रूत मौसम की छाई
दादुर ने नई गीत सुनाई
प्रकृति की जवाँ दिन लौटाई

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088