मन की पीड़ा
मन की पीड़ा कोई क्या जाने
मनमीत ही पीड़ा को पहचाने
गम की पहाड़ जब टुट आता है
जीवन कष्टमय हो ही जाता है
मन की पीड़ा तन मन को खाये
हर्षित जीवन तब मुरझाये
उजड़ जाता है बाग का बागवान
मन में जब आता गम बन मेहमान
कोई देता जब मन को कोई आघात
रूठ लौट जाती है खुशियों की बारात
मन का मयुर मौन मायुस हो रोता है
बदरी गम बन मन गगन पे छा जाता है
भूल जाता है मन जगत व्यवहार
गम का जब होता है तन पे व्यापार
दिल जब चोटिल हो घायल होता है
नासुर बन मन को पीड़ा दे जाता है
हरा भरा जीवन होता नाकाम
छुट जाता है घर का सब काम
उजड़ जाता है चमन उपवन
खिलती कलियॉ गम का है मन
कुछ भी ना लगे मन को तब नीक
दाता ना देना किसी को गम की भीख
खुशियों की वर देना तुम एक सौगात
जीवन में हँसने की हो रोज बरसात
— उदय किशोर साह