कविता

पानी

रे पानी तेरा रंग निराला
उजला लाल काला पीला
रूप बदलते कई है रंग
हिल मिल जाती हो रंगों के संग

जल नीर क्षीर अम्बू  कहलाती
नदी झील सागर में दीख जाती
प्यासी धरा की प्यास बुझाती
जीव जन्तु वन को जीवन दे जाती

तेरे बिन जग है अंधियारा
हर मोड़ पे मानव का सहारा
रेगिस्तान में क्यूँ नहीं जाती
पर्वत की गोद से तुम बह आती

जीवों की तन में तेरा है योगदान
भूल नहीं सकता तुमको इन्सान
जहाँ तुम नहीं जीवन है अंधेरा
वन वनस्पति को तेरा सहारा

किसानो की खेती तेरा वरदान
हे जल देवी तुमको प्रणाम
गंगा यमुना सरस्वती की धारा
तुम जग में जीवन का सहारा

सागर तेरा है अन्तिम पायदान
मछली रानी की तुम हो प्राण
चलना है तुम्हें ढलान की ओर
उफान मारती दहाड़ती  शोर

बह चलती हो राह अनजानी
तेरे जीवन की अद्भूभूत है कहानी
गगन धरातल पे तेरा है राज
तेरे बिन सूना सब काज

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088