गीत/नवगीत

तब आज़ादी पायी थी

भारत में फहराया तिरंगा, विश्व में शान बढ़ाई थी,
जय हिन्द का उद्घोष हुआ, तब आज़ादी पायी थी।
जन जन निकला सड़कों पर, जाने कितने जेलों में,
ललनाओं ने श्रंज्ञार गंवाया, दस्तक पड़ी सुनाई थी।
माताओं ने लाल गँवाये, बहनों ने भाइयों को खोया,
राखी वाले हाथ थके, भाई की सूनी पडी कलाई थी।
भगत सिंह सुखदेव राजगुरू, वाहे गुरू उद्घोष किया,
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, उसकी धमक सुनाई थी।
सुभाष बोस बंगाल छोड़कर, विश्व फलक पर हुंकारे,
नाना, लक्ष्मी जाने कितनों ने, अपनी जान गँवायी थी।
गाँधी नेहरू का भी योगदान, था भारत की आज़ादी में,
गुमनाम हज़ारों लाखों, जिसने आज़ादी दिलवाई थी।
एक लक्ष्य एक ही सपना, सारा भारत देख रहा था,
तमिल तेलगू मलयालम, कन्नड़ ने अलख जगाई थी।
कुछ अंग्रेजों के दलाल बने, निज सुविधा के जाल बुने,
कुछ शहीद हुए भारत माता पर, मौत से आशनाई थी।
लहर चली जो दक्षिण से, उत्तर में प्रचंड तुफान बनी,
पूरब से छँटा अंधेरा,  पश्चिम में चमक बढ़ाई थी।
न भाषा की दीवारें थी, न जाति धर्म का बन्धन कोई,
भाषा बोली सब साथ चल रही, हिन्दी की अगुवाई थी।
नही प्रान्त की बाधाएँ थी, न शहर गाँव में भेद कोई,
भाषाएँ सब एक हुयी जब, तब आज़ादी पायी थी।
— अ कीर्ति वर्द्धन