कहानी

चुटकी भर सिंदूर

छिता और गीता दो सगी बहन ,आपस मे एक साथ पले-बढ़े।एक ही माँ की दोनों संताने,पर दोनों के आचार,विचार में काफी आसमान का अंतर।छिता बड़ी बहन और गीता छोटी बहन।
दोनों को माता -पिता का बराबर
लाड़-प्यार,ममता दुलार मिला।पर छोटी बहन गीता हमेशा रूष्ट और असन्तुष्ट रहती।उसको हमेशा यह शिकायत रहती की-
“बड़ी दीदी छिता को अम्मा -बाबूजी से ज्यादा प्यार मिलता है।
“मुझको वो प्यार नही करते।”
और इसी कारण गीता हमेशा कुढ़ती रहती मुह फुलाए रहती।और ठीक ढंग से अपनी बड़ी दीदी छिता से न ठीक ढंग से बात करती और न अपने अम्मा बाबूजी से बात करती।
जैसे-तैसे करके दोनों बहनों का विवाह अच्छे खाते-पीते घर में कर दिया गया।दोनों ससुराल चले गए।छिता अपने मायका और ससुराल दोनों से सन्तुष्ट रहती और अपने
नारी धर्म का पालन करते हुए बहुत खुश रहती।
पर गीता न ससुराल में खुश,न मायका में खुश।
स्वयं तो नाखुश दूसरों को भी नाखुश करती रहती।और इस प्रकार खींचते-खिंचाते दिन व्यतीत हो रहा था।
संयोंग ऐसा आया कि सावन मास में कजली तीज का पर्व आया,बाबूजी दोनों बहनों को  लिवा कर मायका अपने घर ले आए।
घर-परिवार में खूब उत्सव मनाया गया।
सारे दुख पीड़ा और बीती खटासों को भूलकर कजली तीज का पर्व मनाया गया।दोनों
अपनी-अपनी पुरानी सखी-सहेलियों से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई।बागों में खूब झूला-झूले गए।
फिर वह दिन भी आया जब दोनों बहनों को विदा करते हुए।पहले बड़ी बहन छिता को बाबूजी उसके ससुराल छोड़ने चले गए।और ठीक उसी दिन गीता के पति ,गीता को लेने आ पहुँचा।उसने कहा कि वह आज और अभी
वापस जाना चाहता है।
गीता जल्दी तैयार हो गई और जाने के लिए अपनी अम्मा जी से विदा मांगी और प्रणाम किया।उसकी अम्मा जी ने कहा-
“दूधो नहाओ पूतो फ्लो।”
और अपने साड़ी की पल्लू को खोलकर कुछ रुपये दिए।पर यह क्या ? गीता ने तो साफ मना कर दिया ।और बड़बड़ाते हुए कहने लगी-
“ये क्या अम्मा ?”
” फिर वही !! ”
कुछ रुपये देकर मुझे विदा करके आप अपना मातृ धर्म का पल्ला झाड़ रही हो।मुझे नही चाहिए तुम्हारा यह चन्द
रुपया !!”
यह कहते हुए उसे जमीन पर फेंक दी।
उसकी अम्मा खूब गिड़गिड़ायी पर गीता टस से मस नही हुई ।बल्कि गीता का गुस्सा और बढ़ जाता है, और वहाँ से अपने पति से झल्लाते हुए कहती है-
“चलो जी !!अब मैं यहाँ एक पल भी नही रुक सकती।”
गीता की अम्मा सिसकते हुए बैठ जाती है।
ठीक उसी समय गीता का पति अपने आप को सम्हालते हुए कहता है-
“ठहरो गीता !! यह क्या कह रही हो ?अम्मा से क्या कोई इस तरह से बात करता है ?और तुम तो उनकी बेटी हो।”जिस रुपये के लिए तुमने अपनी जन्म धात्री अम्मा का दिल दुखाया है।तुमने अपनी अम्मा के दिए हुए रुपयों का अपमान नही किया है।तुमने अपने सुहाग का अपमान किया है !तुमने अपने अखंड सौभाग्यवती का अपमान किया है।तुम एक स्त्री होकर भी एक स्त्री की कोमल भावनाओं को नही समाझा।जो कतई शोभा नही देता।”
इतना सुनने के बाद गीता आवाक सी रह जाती है।और कहती है-
“मैने ऐसा कौन सा अपमान  कर दिया है ?”
तब उसका पति गम्भीरतापूर्वक समझाते हुए कहता है-
देखो गीता माँ की ममता और आशिर्वाद का कोई मोल नही है।इसको रुपयों से तौला नही जा सकता।जिस रुपयों का तुमने अपमान किया है,उस रुपयों में अम्मा जी का सगुन व आशिर्वाद छुपा हुआ है।”
तभी गीता हड़बड़ा कर कहती है-
“तुम्हारा क्या मतलब ?”
तब पुनः उसका पति कहता है-
“देखो गीता इस संसार मे रूपया-पैसा
धन-दौलत कभी जीवन भर साथ नही देता।उससे सुख-शांति और आशीर्वाद नही खरीदा जा सकता। अम्मा जी ने जो कुछ रुपया दिया है उसमे अम्मा जी का आशिर्वाद है।”

अम्मा ने मुझसे साफ-साफ कहा है-
“दामाद जी मेरे इस कुछ रुपयों से तुम गीता के लिए चुटकी भर सिंदूर खरीद देना।और कुछ रुपयों से कलाई भर चूड़ियाँ।”ताकि वह अखंड  सौभाग्यवती रहे।कलाई में चूड़ी खनकती रहे।और माथे में चुटकी भर सिंदूर दमकती रहे।”
इतना सुनने के बाद गीता का सारा गुस्सा,सारी नाराजगी दूर हो जाती है।
और फिर अम्मा ! अम्मा !! कहते हुए-
“मुझे माफ़ कर दो।”और चरणों मे गिर जाती है।अम्मा अपनी छोटी दुलारी बिटिया को पाकर  हृदय से लगा लेती है।
— अशोक पटेल  “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578