मेल
“तुम मुझे हथौड़ा कहते हो,” हथौड़े ने हाथ से कहा, “लेकिन लोग तो तुम्हारे लिए कहते हैं- हाथ है या हथौड़ा!”
“हां भाई, समय-समय की बात है और अपनी-अपनी समझ की भी! वैसे तुम तो बहुत काम के हो!” हाथ ने उसकी टोह लेते हुए कहा.
“कह तो सही रही हो. लुहार का तो मैं मुख्य हथियार हूं, मुझी से तो पीट-पीट कर वह न जाने क्या-क्या बना देता है?”
“लुहार ही क्यों, तुम न हो तो मजदूर पत्थर कैसे तोड़ सकेंगे! कील ठोकने, अलग-अलग भागों को जोड़ने, किसी चीज को तोड़ने, पीटकर बड़ा करने के लिए तुम्हारा ही तो प्रयोग होता है!”
“क्यों मुझे शर्मिंदा करने पर तुले हुए हो! तुम्हारे बिना तो मैं कुछ भी नहीं, मेरा तो नाम ही “मानव-हस्त-चालित हथियार” है. भले ही कुछ मशीन द्वारा स्वतःचालित हथौड़े भी हो सकते हैं, पर तुम्हारे बिना तो वह भी बेकार है. नियंत्रण तो फिर भी तुम्हारे ही हिस्से में आता है!”
“कह तो सही रहे हो, बहुत-से काम करने और सोने से जेवर आदि बनाने में तुम्हारे ही छोटे रूप हथौड़ी का आलंकारिक कामों को मैं बखूबी अंजाम दे सकता हूं. मुझे तो तुम्हारा नगाड़ा बजाने वाला रूप भी बहुत मजेदार लगता है.”
“खूब याद दिलाया, नगाड़ा बजाने वाला मेरा रूप तो शांति काल में भी कारगर होता है और युद्ध काल में भी. मुझसे “शहनशाह आ रहे हैं” कहलाओ या “सावधान, शत्रु आ गया है.”, पर यह भी तुम्हारी मर्जी पर है.”
“तुम तो कानून के सहायक भी हो!”
“इस काम में तो मुझे बड़ा मजा आता है, जब जज साहब बड़ा-सा हथौड़ा मारकर “ऑर्डर, ऑर्डर” कहते हैं तो खूब हो-हल्ला मचाती अदालत में सुई-पटक सन्नाटा छा जाता है. ध्यान से देखो तो वहां भी तुम्हारी जय-जय!”
“यानि तुम हो तो हम हैं, हम हैं तो सब कुछ हैं. हाथ और हथौड़े का मेल ही है, सृजन, निर्माण और न्याय का प्रतीक!” दोनों ने एक साथ कहा.