ग़ज़ल
वक्त के दुर्दिनों के मारे हैं।
आज हम सब खुदा सहारे हैं।
अबभला किसतरहमिलन होगा,
इस तरफ मैं वो उस किनारे हैं।
सब पे आफ़त पड़ी गरानी की,
सब के सब दिख रहे बिचारे हैं।
एक दूजे को जानते बेहतर,
साथ में दिन बहुत गुज़ारे हैं।
पालता है सदा खुदा उनको,
जो खुदा के फ़क़त सहारे हैं।
— हमीद कानपुरी