कविता – किस भूल की है सजा
भगवन किस भूल की हमें
तुँने दी है यह जग में सजा
तेरी दर पे ये न्याय है तेरी
तो तेरी जग से मैं अब चला
आया था इस धरातल पर
खुशीयाली जीवन की तलाश
रेगिस्तान बना तपिश दिया है
क्या हो गई है मुझसे कोई खता
पाया था माँ की पावन ऑंचल में
उत्तम तकदीर की मैं दुआ
पर किस गुनाह की तुँने हमको
दे दी है यह अपनी बद्दुदुआ
बिजली जब कौंधती गगन में
डर डर जाता हूँ मैं गरीब
कहीं खौफ् तेरी पाकर ना मैं
हो जाऊँ जगत में बदनसीब
मारने वाले से ज्यादा जग में
बचाने वाले की होती अहमियत
पर कैसे भूल बैठा है तूँ
जीवन की नीति की असलियत
जीवन सरिता भर गई कष्टों से
क्यों हो गया है तूँ बेरहम
उद्गागार व्यक्त कर रहा हूँ मैं
कविता के माध्यम से ये करम
फुरसत जब मिल जाये कामों से
पढ़ना मेरी लिखी दिल की गुबार
हाे सके तो माफी दे देना मुझे
आशिष दे देना मेरे परवरदीगार
— उदय किशोर साह