ग़ज़ल
मैं चाहकर भी तुझसे खफा हो नहीं सकता
दामन है तार-तार मगर रो नहीं सकता
सपनों में अभी रंग भी पूरे कहाँ भरे
नाराज करके नींद को मैं सो नहीं सकता
कोरी वफा के तन पे लगी है भरम की छाप
ये दाग आँसुओं से भी मैं धो नहीं सकता
मासूम सा बच्चा जो पिता की है अमानत
मेले की भीड़-भाड़ में वो खो नहीं सकता
वो ‘शान्त’ जिसे फूल की खुशबू से है लगाव
औरों की राह में वो शूल बो नहीं सकता
— देवकी नन्दन ‘शान्त’