धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

जीवन की सच्चाई

’ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या’ शास्त्रों ने तो यही बताया हैं कि जगत यानि कि जीवन मिथ्या हैं।जीवन को मिथ्या समझने का मर्म ये हैं कि जीवन को अच्छे कर्मों से , सत्य की राह पर चलकर सार्थक बनाओं, न कि झूठ और फरेब के आचरण से नर्क सा बनाओ।एक झूठ सो झूठ बुलवाता हैं ये हम सब जानते ही हैं। उस वक्त  झूठा इंसान कितनी यातनाएं भुगतता हैं वह वहीं जाने।सब से पहलें झूठ को छिपाओ फिर बाहर नहीं आ जाएं इसके लिए मनघड़ंत दूसरे झूठ ओर फिर एक ओर फिर एक ओर…. बस सिलसिला चल पड़ता हैं।
     ब्रह्म का मतलब सच्चिदानंद, जगत का मूल रूप,ईश्वर,परमात्मा ही हैं।अगर जीवन का सत्य जानना हो तो उनके कहे मार्ग पर चलने से ही उस सत्य की प्राप्ति होगी।जीने को तो जीवन सभी जीते हैं किंतु उनकी गुणवत्ता अलग अलग होती हैं।अगर नरतन पाया हैं जो सूक्ष्म जीवाणु और पशु पक्षियों से उत्तम हैं तो उस उत्तम प्राप्ति को कनिष्ठ कर्मों में नहीं उलझा कर सत्कर्म के मार्ग पर चलने से उत्तम जीवन फल प्राप्त होता हैं, वैसे अंत तो सभी का एक ही हैं चिता तक का लेकिन रास्ते अलग अलग होंगे।किसी की शानदार मृत्यु,पीछे रोने वाले अनेक,अच्छे कर्मों की सराहना करके दुःखी होते हैं।किसी की मृत्यु पर मगर मच्छ के आंसू और मन में भावना कि गया तो ठीक हे धरा का भार कम हो गया,क्योंकि पाप का वजन ज्यादा होता हैं ,जड़ होने की वजह से ।जन्म से मृत्यु तक का सफर सभी को तय करना ही हैं लेकिन मुख्य प्रश्न ये हैं कि वह कैसा हो।
सुख में कटे या दुःख में कटे
 प्रभु अंत एक सा होयें
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।