आजादी की सपना
अरमानों को मन में था संजोया
अच्छे ख्वाब को चासनी में था भिगोया
मन में सुखान्त का सपना था तब बोया
पर रब ने सब अरमान था पल में डुबोया
देखा था सुन्दर एक सुनहरा सपना
घर बार होगा आजादी का अपना
पर देश की बँटवारा ने खड़ी की दीवार
लड़ाई लड़ रही है आज भी आर पार
बिखर गई स्वाधीनता की ठंडी परछाई
अपनों से अपनों ने थी दूरी बनाई
एक धरती की हो गई दो अलग टुकड़ा
ख्वाब अधुरे सब था उखड़ा उखड़ा
छुटा घर बार छुटे सब अपने पड़ोसी
लुट पाट दहशत की हो गई सरपोशी
मार काट में लिप्त था तब जमाना
कैसी आजादी की खड़ी हुई पैमाना
नेता मूक दर्शक् बन चुप चाप था बैठा
हर कोई कुरसी पर था चढ़ा कर मुखौटा
बँटवारा का दंश था हर कोई पाया
खुशी के ऑचल मे गम था समाया
कोई किसी का कब सुनता था
अपने मुल्क में शरनार्थी बना था
भूखा प्यासा सड़क पर था रोया
पर नेता गण को दर्द ना था आया
रामराज्य का अरमान हुआ झूठा
हर चेहरे से खुशियाली था रूठा
ये कैसा नजारा रब ने दिखलाई
हिन्दू मुस्लिम कभी थे भाई भाई
बँटवारा ने दुश्मनी की राह दिखाई
एक दुजै पे आक्रमण हत्या कराई
जो कभी दिखता था अखंड हिन्दुस्तान
बँट गया वो भारत व पाकिस्तान
— उदय किशोर साह