कविता

आजादी का पर्व

आजादी का पर्व, 75 वां वर्ष, अमृत महोत्सव ,अलग बिल्कुल खास‌ ।
खिलता ,लहराता तिरंगा चारों ओर, करा रहा है इसका आभास।
यूं तो हर वर्ष हम आजादी का पर्व मनाते आए हैं।
कविताएं पढ़ी गीत लिखे और गाने गाए है।
पर लगता है कहीं ना कहीं इतिहास का मिला हमको आधा अधूरा ज्ञान ।
हम रहे या रखा गया हकीकत से अनजान ।
क्यों हमको ऐसे पाठ पढ़ाए गए ।
हुमायूँ बाबर अकबर क्यों हमको रटाए गए ।
देश को जिन्होंने लूटा, मंदिर तोड़े धर्म को जिन्होंने छिन्न-भिन्न किया।
हिंदू राष्ट्र को खंडित करने का हर संभव प्रयत्न किया।
सडके ,शहर ,संस्थान उनके नामों से क्यों है भरे।
ऐसे कैसे चलता रहा यह बात है समझ के परे।
अब जब होने लगा है इसका आकलन।
धीरे-धीरे जब होने लगा है परिवर्तन ।
परत दर परत खुलने लगी तो होने लगे हैं आंदोलन।
लोग समझ रहे हैं हिंदुस्तान बदल रहा है और पूरा बदलेगा वह दिन अब दूर नहीं।
राह मुश्किल जरूर है पर नामुमकिन नहीं।
हमको घबराना नहीं पूरा साथ निभाना है।
अंदर के डर को दूर भगाना है।
धारा 370 हटी है अभी तो बहुत से परिवर्तन बाकी है।
नया भारत बन के रहेगा यह तो सिर्फ एक झांकी है ।
कॉमनवेल्थ में जैसा तिरंगा फहरा हर क्षेत्र में तिरंगा लहराएगा ।
हर 15 अगस्त अमृत महोत्सव होगा, वंदे मातरम होगा
और हर जगह जन गण मन गाया जाएगा।

अशोक गुप्ता

साहिबाबाद निवासी, आटे-अनाज के व्यापारी, मंचों पर कवितायेँ भी पढ़ते हैं.