कान्हा
हो गई दुनियाँ की बंटाधार
सुन लो जग की कान्हा पुकार
जन्म लो पुनः धरा पे एक बार
कर दो पापीयों का अब संहार
हर तरफ मार काट है आया
प्रेम की लुट गई जग से काया
मानव को बम बारूद है भाया
उजड़ रहा है ममता का साया
संकट का बादल जग पे छाया
मानव ही मानव को है सताया
पापी लुट का माल है कमाया
दुसरे का अंश का अन्न है खाया
क्या हो गई दुनियॉ की कहानी
कान्हा कब तलक करोगे नादानी
एक बार छेड़ दो अमृत वाणी
शेषनाग की खत्म हो पाप रवानी
-कर दो पापीयों का अब संहार
एक बार पुनः लो धरा पे अवतार
रूठा है मानवता का संसार
नारी हो रही है जग में शर्मसार
हो गई दुनियाँ की बँटाधार
सुन लो कान्हा जग की पुकार
जन्म लो यशोदा के घर एक बार
कर दो पापीयों का जग से संहार
— उदय किशोर साह