कविता – आतंक का चमन
ओ रब तुँने कैसा चमन लगाया
आतंक के फूलों से उसे सजाया
मारकाट का गुलदस्ता भेजवाया
मानवता में पतझड़ क्यों बुलाया
ओ रब तुँने कैसा खेल खेलाया
मानव को मानव से लड़वाया
अशांति की खुशबू से महकाया
इन्सानियत की कड़ी तुड़वाया
ओ रब तुँने कैसा विसात सजाया
एक दुजै से दुश्मनी है करवाया
पड़ोसी को भी बैरी बनवाया
कौन सी ये चाल है चलवाया
ओ रब तुँने कैसा पाठशाला चलाया
अमन चैन से बैरी का पाठ पढ़ाया
लुट खसोंट का सबक सिखलाया
झूठे ख्वाब का हवा महल दिखाया
ओ रब कैसा बेशर्म मानव को बनाया
नारी पर अत्याचार का ठीका दिलाया
बलात्कार को उद्योग है बनवाया
जग में वहशी को पानी खाद दिलाया
— उदय किशोर साह