कविता – नाव पुरानी
नदी है गहरी नाव पुरानी
मंझधार में फँसी जीवन की कहानी
साहिल खड़ा देख मुस्कुगाता
पर मदद हेतु हाथ ना है बढ़ाता
रे मांझी अब तूँ बचाने आ जा
नाविक बन रब तुँ ही अब आ जा
ले चल पहुँचा दे हमें किनारा
पा लेगें जीवन को हम दुबारा
जीवन जब तुमने दी अनमोल
भॅवर से निकालो बगैर कोई मोल
सुन मेरी विनती ओ त्रिपुरारी
कर दे जीवन की नैय्या पार हमारी
मन है बेचेने तन है अति भारी
बुद्धि विवेक सब गई है मारी
तुँ नायक बनकर अब आना
भँवर में फँसी मेरी नाव बचाना
तुँने दिखलाया था जीवन का सपना
जग में नहीं दीखता है कोई अपना
किस बात की गुस्सा है तुम्हारी
क्षमा कर दो सारी भूल हमारी
तेरे दर पे जब मैं आऊँगा
शीश झुकाकर तब क्षमा मांगूगा
आऊँगा तेरे दर पे उस दिन
प्रकट हो जाना जीवन में एक दिन
जीवन पथ पर भटक गया हूँ
तमस की दलदल में फँस गया हूँ
राह दिखलाना ओ प्रभु श्री राम
बिगड़ी बना दे मेरी हर वो काम
— उदय किशोर साह