साधो साध विचार:: जीवंत कबीर दर्शन
गोनार्द की उर्वर भूमि में महर्षि पतंजलि, गोस्वामी तुलसीदास जी सहित अन्याय ख्यातिप्राप्त कवियों, साहित्यकारों, विभूतियों और गोण्डा की पहचान बन चुके स्व. रामनाथ सिंह “अदम गोण्डवी” जैसी विभूतियों से आच्छादित हो चुकी धरा पर कबीर की विचारधारा को रेखांकित करते हुए फक्कड़ और स्वच्छंद प्रकृति के रचनाकार हैं हनुमान प्रसाद वर्मा “नीरज गोण्डवी” जी।
“साधो साध विचार” पढ़ने के बाद लगता है कि जैसे संत कबीर की आत्मा “नीरज” के शरीर में घुस पैठ कर गयी हो।
पूज्य गुरु चरणों में समर्पित “साधो साध विचार” दोहावली में संत कबीर के विचारों को प्रस्तुत किया गया है।
बेलौस, बेलाग अंदाज नीरज का लेखन एकदम फक्कड़ी है। शायद आज के परिवेश की परवाह किए बिना ही “नीरज” अपनी रौ में ही बहते चले गए। जिसका नतीजा ये रहा उन्हें कबीर परंपरा का संवाहक कहना अतिशयोक्ति न होगा।
मानवता वाद पर जोर देने की सफल कोशिश का आभास पाठक स्वयं करेगा।
बसुधैव कुटुम्बकम की आशा करते हुए रचनाकार पुस्तक के नाम का शाब्दिक अर्थ बताते हुए लिखा है कि “हे साधुगण, साधकों यि सज्जनों पुरुषों-इस पुस्तक में लिखित बातों पर विचार करके तौलो, साधो और खरा हो तो अपने जीवन में उतारो या आत्मसात करो।
उनकी सहजता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि उन्होंने स्वयं को अल्प बुद्धि और स्वयं कुछ न दे सकने वाला मानकर व्यक्ति और समाज को कुछ देने का प्रयास किया है। जिसे सफल और सार्थक कहना ही पड़ता है।
वैसे तो हर शब्द, पंक्तियां, लाइन बहुमूल्य हैं, फिर भी कुछ पंक्तियां रखना मेरे दृष्टिकोण से उचित है-
नित उठ सतगुरू आप को, सौंपूँँ हाथ पसार।
माया मधु से लो बचा, आपन दास विचार।।
अहम त्याग हरि का भजै, तज नख-शिखहिं बिकार।
सब जीवहिं निर बैर हो, साधु मते अनुसार।।
पंडित मन: विचार कर, छूत उपजि केहि भाँति।
प्राणवायु, रज, वीर्य सों, यह जग सब उत्पात।।
प्रथम गुरु माता-पिता, शब्द करायो ज्ञान।
द्वितीय गुरु जग ज्ञान दी, तीजै साहिब ध्यान।।
भेद न राम रहीम मा, ज्योति एक सब माहि।
तुरक, इसाई, हिन्दु में, जाति भेद कछु नाहिं।।
देह किराए का मकां, जीव पाय भूं आय।
सुमिरन प्रभु भूला अगर, कैसे कर्ज चुकाय।।
नेक राह चलना कठिन, कुहरा बिघ्न बढ़ाय।
पर आगे बढ़ते रहो, आशा ज्योति जलाय।।
जितना तुमसे हो सके, कर्म बुरा तू टाल।
पर तुम अच्छे कर्म को,कर डालो तत्काल।।
जो सब में है रम रहा, सोई सो$हम राम।
अल्लह ,सत्य कबीर या, “ओ$म कहो सत्नाम।।
41पृष्ठों मेंं 328 दोहों से सुभाषित पुस्तक की भूमिका डा. छोटे लाल दीक्षित जी ने, साधो साध विचार और नीरज वरि. कवि शिवाकांत मिश्र “विद्रोही” जी ने बहुत सारगर्भित ढंग से पुस्तक ही नहीं रचनाकार के बारे में बहुत ही गहरे चिंतन के बाद ही लिखा होगा।
तत्पश्चात दोहावली प्रारंभ से पूर्व “रचनाकार की कलम से” में “नीरज” ने अपना मतंव्य बड़ी ही साफगोई से लिखा है।
अमन प्रकाशन गोण्डा (उ.प्र) से प्रकाशित पुस्तक का मूल्य मात्र 50 रु. है, जो पुस्तक की उपादेयता के सापेक्ष शून्य सा है।
संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि पुस्तक पठनीय होने के साथ, भावों की ग्राहयता को दिशा देने वाली है।
मैं पुस्तक की सफलता और “नीरज” के स्वस्थ, सानंद और दीर्घायु जीवन की कामना, प्रार्थना करता हूँ।