पूर्वजों को नमन
हम सभी पितृपक्ष में
पूर्वजों,पित्ररों को नमन करते हैं,
तर्पण, दान, श्राद्ध, पिंडदान
और बहुत याद करते हैं,
अपना कर्तव्य, परंपरा निभाते हैं।
मगर क्या हम सचमुच
पूरी ईमानदारी से ऐसा करते हैं?
या महज औपचारिकता निभाते हैं?
बड़ा विचारणीय प्रश्न है
जिसे हम सब बड़े प्यार से नजर अंदाज करते हैं।
अच्छा है कीजिए और करते रहिए
दुनियां, समाज को दिखाने के
ढकोसले करते रहिए।
आपका भला ही होगा।
क्योंकि आपके लिए भी ऐसा ही होगा
जो आप अपने जीवित पूर्वजों के साथ
अब तक करते आ रहे होंगे
वही संस्कार आपके बच्चों को भी मिल रहे होंगे।
जीवित मां, बाप, बुजुर्गो के साथ
आज क्या क्या हो रहा है?
बताने की जरूरत नहीं है,
आपकी आँखों में वो सब तैर ही रहे होंगे,
जो हम आप खुद कर रहे होंगे।
बढ़ते वृद्धाश्रम खुद हमारे कृत्यों की कहानी
हमें ही तो रोज सुना रहे हैं,
हमारे बुजुर्गों के आँख से बहते आँसू
पीड़ा से कराहते अंतर्मन
हमें बड़ी दुआ और आशीर्वाद ही दे रहे होंगे।
आखिर देंगे भला क्यों नहीं?
जब हम बंद कमरों में उनसे
जीते जी मारपीट करते
उन्हें जलील करते, उनकी उपेक्षा करते
न उनसे प्यार के दो बोल बोलते
उनके पास बैठकर अपनेपन का
अहसास तक न करा पाने का समय ही निकाल पाते।
इससे भी जब मन को तसल्ली नहीं मिलती
तो वृद्धाश्रम में छोड़ मुक्त हो जाते
जैसे चारों धाम की यात्रा का सूकून पाते
या फिर बड़ी बेसब्री से उनके मरने की प्रतीक्षा करते
और बहुत खुश होते इस बात पर
कि हम तो अपना कर्तव्य हैं निभाते।
पूर्वजों को नमन करते
श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान करते फोटो
सोशल मीडिया पर बड़ी जल्दी लगाते
लाइक, कमेंट की प्रतीक्षा करते
पूर्वजों की याद में महज अभिनय करते,
अपने कर्तव्य, परंपराओं की औपचारिकता
साल दर साल पूरी ईमानदारी से निभाते
यह सब देख हमारे पूर्वज बहुत खुश होते,
हम उन्हें नमन करें न करें
वे प्रतीक्षित भी नहीं होते
मगर इन पंद्रह दिनों में वे हमें नमन जरुर करते
उनके भी जैसे पितृपक्ष में भाग्य खुल जाते,
और हम पूर्वजों को नमन करने का ढोल पीटते।