कविता

शायद ये दर्द सभी औरतों का होता है

जब गुजर गया सोने सा वक़्त
उसने कहा तुम कर लो जो करना चाहती हो
कब मना किया तुमको
जो चाहो कर सकती हो
सहमी आँखों में वो सारे पल गुजर गए
यकायक चलचित्र की तरह वो दृश्य गुजर गए
वो हर पल की बंदिशें
वो हर पल जैसे ठगा जाना
आने वाले कल की अभिलाषा में
आज की इच्छा को मारा जाना
बस कुछ समय की ही तो बात है
कल देखना सब अच्छा होगा
आने वाला कल आज से कहीं बेहतर होगा
मत सोचो देखो अपने बारे में
बच्चों का भी तो भविष्य देखना होगा
क्या कभी सोचा तुमने
कितना नीर बहा होगा इन सालों में
कितनी तमन्नाओं को मारकर
कुछ आस जगाई  होगी जीवन में
वक़्त होता है हर बात का
अब कहाँ सुहाते हैं वो जेवर कपड़े
अब कहाँ सपने सजने सँवरने के
अब तो हँसना भी जैसे सपना लगता है
मुस्कराने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है
वक़्त कहाँ इजाजत देता है
वक़्त कब वो दिन लौटा पाता है
वक़्त कैसे वापिस आ सकता है
जो जीवन जिया झूठी उम्मीदों में
अब वो उम्मीदें भी टूटती नजर आती हैं
खुशियाँ मोहताज नहीं होती
जेवर ,कपड़े और गाड़ियों की
बस दो मीठे बोल अपनों के
दर्द में भी जैसे मीठी गोली होती हैं
एक वक्त के बाद मिला
 अमृत भी मायने खो देता है
 क्या ये सच किसी को नजर आता है ?
— वर्षा वार्ष्णेय

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017