पुस्तक समीक्षा

साई अमृत बिंदु

 

अंतरराष्ट्रीय पहचान स्थापित करने की ओर लगातार अग्रसर सतना (मध्यप्रदेश) की विदुषी, धार्मिक महिला, वरि. कवयित्री/लेखिका श्रीमती ममता श्रवण अग्रवाल “अपराजिता” की अनूठी पुस्तक “साई अमृत बिंदु” पढ़कर उनके बृहद व्यक्तित्व का अहसास होता है।

इसके पूर्व कई पुस्तकों के अलावा “सरल रामायण-रामायण का भावानुवाद” में उन्होंने संपूर्ण रामचरित मानस का अपने शब्दों में काव्यमय चित्रण और प्रकाशन कराकर “अपराजिता” ने अपनी विशिष्टता और सृजन क्षमता का उदाहरण दे चुकी हैं।

प्रस्तुत पुस्तक के “एक भाव अपनों के लिए….” में लेखिका ने लिखा है कि सुविचार जो दिखते मेंं तो बहुत छोटे होते हैं, पर एक व्यक्ति की पूरी जीवन दशा बदल सकते हैं।

“अपराजिता” ने खुले मन स्वीकार किया है कि मेरे सुविचार मेरे प्रभु की वाणी और मेरे गुरुवर की कृपा है। जिसे मैं पिछले दो सालों से अनवरत लिख ही नहीं रही हूँ, बल्कि मेरा प्रयास यही होता है कि मैं स्वयं इसका अनुपालन करने के बाद लोगों तक पहुंचाऊं।

उनका मानना है कि “विचार हम सभी के मन मेंं चलते रहते हैं, कभी उत्कृष्ट, कभी अच्छे और थोड़ा कम अच्छे, पर चलते सदा ही हैं, फिर यही विचार, गतिविधियां हमें प्रभावित करती हैं, और हमें अच्छे और कम अच्छे अनुभव भी दे जाती हैं, और जब हम गहराई मेंं जाकर इनका आंकलन करते हैं, तब ये विचार सुविचार बन जाते हैं। क्योंकि तब व्यक्ति इनकी गुणवत्ता को समझ जाता है।

साथ ही उदाहरणार्थ सुविचार काफी कुछ कहने को पर्याप्त है-

“इक छोटे से विचार से देखो

बदल जाए मानव का दर्शन।

पाकर नारद जी की वाणी

बाल्मीकि ने लिखी रामायण।।”

पुस्तक में शामिल 240 सुविचारों का उल्लेख समीचीन होगा-

“एक पिता और एक परम पिता,

दोनों से ही है होता संरक्षण।

एक पिता से मिले जन्म,

औ परम पिता से जीवन रक्षण।।

 

“सच्चा साथी यह तन हमारा,

समझो अब इसकी महत्ता को।

सब हो पर, तन हो यदि जर्जर,

तब कैसे भोगें इस सत्ता को।।”

 

“मिट्टी की गरिमा तो देखो,

एक गुना ले, देती हमको सौ गुना।

उससे सीखें हम यह गुण

कैसे होना चाहिए लेना और देना।।”

 

“मंगलमय के शुभ भावों से ही,

मंगलमय हो सृष्टि का सिंचन।

तब मंगलमय की इस बेला में,

मंगलमय का होगा अभिनंदन।।”

 

“पाकर रस्सी का साथ बाल्टी,

लेकर आती है कुँए का जल।

ऐसे ही लेकर दृढ़ संकल्प हम,

लाएं मोती जा सागर तल।।

 

“जैसे साफ करें हम कचरा,

अपने सुंदर घर आँगन से।

ऐसे ही दूर करें विकारों को,

अपने मधुमय जीवन से।।”

 

समीक्ष्य पुस्तक के एक एक सुविचार पढ़कर बहुत कुछ सीखने समझने और जीवन मेंं उतारने को बाध्य करने वाला है। यदि हम एक भी सुविचार अपने जीवन मेंं उतार पायें, तो निश्चित ही उसका प्रभाव हमें देखने मेंं जरूर मिलेगा और यही पुस्तक की सार्थकता है।

संक्षेप में अगर कहा जाय तो पुस्तक सिर्फ पढ़ने ही नहीं मनन, चिंतन और ग्राह्य होने के साथ ही अपनों और अपने शुभचिंतकों को उपहार में भी देने योग्य है।

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921