कविता

यह कैसा अधिकार है

यह कैसा अधिकार है
जहां कर्तव्य का उपहास है,
सिर्फ अधिकार हमारा है
कर्तव्य तो औरों का है
हमारा तो बस यही सिद्धांत है।
ये बेशर्मी है, जो ठीक नहीं है
हर किसी का अपना अधिकार है
तो कुछ कर्तव्य भी है,
यदि अधिकार चाहते हो तो
कर्तव्य निभाना भी सीख लो
सिर्फ अधिकार की भीख नहीं
अपने कर्तव्य का भी साथ ले लो।
तभी तुम आगे बढ़ सकोगे
वरना भीख की बैशाखी पर
चलते हुए असमय मरोगे।
इंसान हो तो इंसान की तरह रहो
कर्तव्य से पल्ला झाड़ मुंह न छिपाओ,
वरना बहुत पछताओगे
समाज और राष्ट्र की बात छोड़ो
अपने खुद के घर में भी
अधिकार की भीख के बदले
सिर्फ दुत्कारे जाओगे।
तब कर्तव्य की बात छोड़ो
अधिकार की बात भी भूल जाओगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921