ग़ज़ल
वक़्त के अनुसार सबको ही बदलना चाहिए।
जिस तरफ़ जाए ज़माना, साथ चलना चाहिए।
गूँज वंदे-मातरम् की है फ़िज़ाओं में घुली,
हम सभी के कंठ से यह स्वर निकलना चाहिए।
सरहदों पर गर पड़ोसी कुछ ग़लत हरकत करे,
ख़ून तो मेरी रगों में भी उबलना चाहिए।
दूसरों की राह में कुछ रोशनी हम कर सकें,
इसलिए तो दीप के मानिंद जलना चाहिए।
रहनुमा की सोच में हर देशवासी के लिए,
एक बेहतर ज़िंदगी का ख़्वाब पलना चाहिए।
— बृज राज किशोर ‘राहगीर’