लघुकथा

लक्ष्मन रेखा

मीना के इकलौते बेटे ने प्रेम विवाह किया तो मीना ने उसकी खुशी में ही अपनी खुशी ढूंढनी चाही : मियां बीबी  राजी तो क्या करेगा काजी !
बात यहीं तक सीमित नहीं थी बेटा तुुषार सोचता वो रीमा को ब्याह कर लाया है तो उसका ख्याल रखना उसकी जिम्मेदारी है .तो हमेशा चट्टान की तरह आगे रहता!
मीना सोचती हर घर के तौर तरीके अलग होते हैं जो सास से बहु सीखती है पीढी दर पीढी ये परंपरा चलती है |
वो भी तो कितनी छोटी उम्र में ब्याह कर आई थी, अल्हड़ नादान पर सास ने धीरे धीरे अपने सांचे में ढाल लिया अब मेरी बारी है मगर कैसे तुषार के एकाधिकार ने तो  रीमा और मीना के बीच एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींच दी कि वो शादी के लंबे अर्से बाद भी गहराती जा रही है, ना केवल सास बहु वरन मां बेटे के बीच भी एक अभैद्य दीवार बन गई है,  जिसका तोड़ वो पीर पंडितों में तलाश रहा है!!!!!
— गीता पुरोहित

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,