धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सदा-सुहागन का पर्व करवा-चौथ

हमारे भारतीय सस्कृति में पर्व-
अनुष्ठान आदि का हिंदुओ के जीवन में अत्यधिक महत्व रखता है।
और इस पर्व-अनुष्ठानों में जनमानस को मंगलकामना,जनकल्याण,की भावना,साफ-साफ नजर आती है।और इसी बहाने यह जनमानस अपनी संस्कृति,परम्परा,रीति-रिवाज,को अक्षुण बनाये रखने में सतत प्रयास करता है।
इसी परम्परा और संस्कृति में हिंदु सुहागन माताओं-बहनों का एक पर्व आता है जिसे कहा जाता है “करवा चौथ”।
करवा चौथ हमारी माताओं का सबसे बड़ा और सबसे मंगल पर्व के रूप में जाना जाता है।इसमें सौभाग्यवति स्त्रियां अपने पति के मंगल कामना और दीर्घायु होने का व्रत करती हैं।इस पर्व को मनाने के लिए पुरे सालभर तैयारी और प्रतीक्षा की जाती है।इस पर्व को लेकर माताओं-बहनों में खासी उत्साह,और उल्लास देखने को मिलती है।ये सुहागिन स्त्रियां,सोलह श्रृंगार करती है, दुल्हन की तरह सजती-सँवरती है, और फिर इस व्रत की तैयारी करती हैं।
“करवा चौथ पर्व का मुहूर्त”-

करवा चौथ का पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष के चतुर्थी को मनाया जाता है, यह पर्व ब्रम्ह मुहूर्त में सूर्योदय से पूर्व 4.00 बजे से प्रारम्भ होकर,रात्रि के चंद्रोदय होने तक चलता है।जब सुहागिनों को पता चलता है तो वे घर की छत में पहुंचकर भाल-चन्द्र गणेश जी का छलनी के ओट में दर्शन करती है।
उनको पावन जल से अर्ध्य देती हैं, मीठे पकवानों से भोग लगाती हैं। इसके बाद ये सुहागिन स्त्रियां इसी छलनी की ओट से चन्द्रमा और अपने पति परमेश्वर का एक साथ दर्शन करती हैं, अपने पति से मंगल कामना हेतु सदा सुहागिन रहने का वरदान मांगते हुए चरण स्पर्श करती हैं।और पति के हाथों जलपान कर व्रत पूर्ण करती हैं।
“करवा चौथ और चलनी का महत्व”-

करवा चौथ सुहागिनों का सबसे बड़ा,और प्रमुख पर्व है।जिसमे ये सुहागिन अपने पति के दीर्घायु,और आरोग्य,सुख,शांति,की कामना करती है।
इसी प्रकार छलनी का इस व्रत में बहुत बड़ा महत्व है। बिना छलनी के यह व्रत पूण नही माना जाता।इसी के ओट में चांद का दर्शन किया जाता है।
इसके सम्बंध में एक कथा आती है की एक करवा नाम की सुहागन स्त्री होती है, जो यह व्रत करती है दिन भर निर्जला व्रत रहने के बाद देर रात हो जाती है लेकिन उसे चाँद दर्शन नही होता।तो व्याकुल हो जाती है, इसके व्याकुलता को दूर करने के लिए,करवा के भाई ने उसके साथ एक छल किया।उसने रात को एक पेड़ के पीछे में छलनी को लेकर उसके ओट में दिया जला दिया,तब उसके अन्य भाईयों ने ये कहा कि देखो बहना चाँद निकल आया,तुम दर्शन करके अपना व्रत तोड़ लो।करवा ने इसे सत्य समझ व्रत तोड़कर फलाहार करने बैठ गई,और जैसे ही उसने निवाला मुह में डाला,उसके ससुराल से ये ख़बर आ जाता है कि उसका पति खत्म हो गया है।करवा दुख-संतप्त हो विलाप करने लगती है।ऐसे समय मे वहां देवी इंद्राणी प्रकट होती है और सारे वस्तु स्थिति,छल से अवगत कराती है।तब वह करवा पुनः व्रत को पूर्ण करती है,इस बार वह स्वयं अपने हाथों में छलनी पकड़ती है और स्वयं चाँद का दर्शन करती है, इस बार किसी प्रकार से उसके साथ छल नही हुआ।और तब उसका पति जीवित हो जाता है।तब से लेकर आज तक उस छल प्रपंच से बचने के लिए ये सुहागिन स्त्रियां स्वयं छलनी पकड़ती है,और चांद का दर्शन कर अपना व्रत पूर्ण करती हैं।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578