पुस्तक समीक्षा

अंकित है जो समय शिला पर : डायरी नहीं, समय का दस्तावेज़

काल की गति बहुत निर्मम होती है, उसकी समरस चक्की सबको पीसती चलती है I समय सबसे बड़ा गुरु, न्यायाधीश और आलोचक होता है I समय की सत्ता के सम्मुख मनुष्य की कोई सत्ता नहीं है I गुजरता हुआ समय मनुष्य को कोई न कोई सीख देता चलता है, लेकिन अपने अहंकार, लोभ और अज्ञान के कारण अधिकांश मानव सीख ग्रहण करने से वंचित रह जाते हैं I समय के पास सबका लेखा-जोखा और बही-खाता होता है I समय से बड़ा कोई नहीं है, स्वयं समय भी समय से बड़ा नहीं है I समय का अपना एक अनुशासन है जिसके अनुसार लाखों वर्षों से वह बिना रुके, बिना थके चला जा रहा है I प्रख्यात कथाकार श्री रूपसिंह चंदेल की सद्यःप्रकाशित डायरी “अंकित है जो समय शिला पर” में उसी समय का हिसाब-किताब दर्ज है I डायरी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है जिसमें डायरी लेखक अपने दैनिक जीवन में घटित महत्वपूर्ण घटनाओं, विचारों और उस कालखंड की परिस्थितियों का आकलन और शब्दांकन करता है I डायरी इतिहास नहीं है, किंतु इसमें इतिहास की सच्चाइयों की खोज की जा सकती है I संवेदनशील डायरीकार समाज और देश-दुनिया में घटित घटनाओं से निरपेक्ष नहीं रह सकता है I अतः डायरी में किसी कालखंड विशेष के सामाजिक-राजनैतिक तापमान को महसूस किया जा सकता है I हिंदी में अन्य साहित्यिक विधाओं की अपेक्षा डायरी का विकास कम हुआ है I श्री रूपसिंह चंदेल ने अपनी डायरी में अपने संघर्षों, दैनिक जद्दोजहद और कशमकश को बेबाकी के साथ प्रस्तुत किया है I जिस साहस के साथ उनकी लेखनी ने अपने अनन्य मित्रों और रिश्तेदारों के पाखंड और झूठ को बेनकाब किया है वह वरेण्य है I उन्होंने हिंदी साहित्य के अंतर्विरोध, साहित्यकारों की हृदयहीनता और तथाकथित बड़े साहित्यकारों के छोटेपन का ईमानदार वर्णन किया है I डायरी में कथाकार ने अपने मित्रों, सगे-संबंधियों और साथियों की उपेक्षा का जीवंत वर्णन किया है I हिंदी साहित्य में एक-दूसरे को धकियाने का चलन आम है जिसका लेखक ने कई बार उल्लेख किया है I हिंदी में स्वयं को स्थापित करने और अन्य साहित्यकारों को अपदस्थ करने की कुटिल चाल वर्षों से जारी है जिसका डायरीकार ने अनेक स्थलों पर उल्लेख किया है I डायरी में साहित्यकारों द्वारा किए गए षड्यंत्रों का बेबाकी के साथ पर्दाफाश किया गया है I हिंदी में प्रतिभाओं की उपेक्षा और प्रतिभाहीन लेखकों का महिमामंडन करने की लंबी परंपरा रही है जो आज भी बदस्तूर जारी है I जिस प्रकार बॉलीवुड में सफल होने के लिए किसी गॉडफादर की आवश्यकता होती है उसी प्रकार हिंदी साहित्य के गॉडफादर भी सफलता की गारंटी देते हैं I हिंदी के आलोचक मठाधीश बन बैठे हैं जो किसी लेखक अथवा कवि को यशस्वी बनाने की सुपारी लेते हैं I चंदेल जी ने प्रश्न किया है-“कब तक प्रतिभाओं का हनन करते रहेंगे लोग और प्रतिभाहीन या कम प्रतिभावालों को अपने स्वार्थ के लिए स्थापित करते रहेंगे I” (25 फरवरी 1992) परिस्थितियां व्यक्ति को तोड़ देती हैं, लेकिन जो व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी अपना मनोबल बनाए रखता है और नैतिकता का दामन नहीं छोड़ता है वही काल के कपाल पर इतिहास को अंकित कर पाता है I इस डायरी के द्वारा पाठक चंदेल जी की जिजीविषा, उनके संघर्षशील व्यक्तित्व और प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझने के अदम्य साहस से परिचित होते हैं I उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी अपनी रचनात्मक ऊर्जा को अक्षुण्ण रखा यह प्रशंसनीय है I अपनी रचनाधर्मिता के कारण विपरीत परिस्थितियों में भी डायरीकार ने अपना हौसला बनाए रखा अन्यथा विषम परिस्थिति में व्यक्ति टूट सकता है I डायरी में लेखक ने अपनी बेचारगी और हताशा प्रकट की है-“दफ्तर में और जीवन ने जो नारकीयता पैदा कर दी है उससे लगता है कि आराम शायद कभी मिलेगा ही नहीं I” (24.12.92) डायरी के द्वारा लेखक के उहापोह, निरर्थकता बोध और रचना प्रक्रिया को समझा जा सकता है I
“अंकित है जो समय शिला पर” एक वरिष्ठ कथाकार की डायरी है, लेकिन इसमें आम आदमी की व्यथा कथा को दर्ज किया गया है I डायरीकार ने एक आम आदमी की पीड़ा, मकान, बिजली और पानी के लिए संघर्ष, मकान मालिक की बदमाशियों इत्यादि का बेबाकी के साथ वर्णन किया है I इसी काल खंड में कथाकार की महत्वपूर्ण औपन्यासिक कृति ‘रमला बहू’ प्रकाशित हुई थी I डायरीकार ने अपने चर्चित उपन्यास ‘रमला बहू’ के संबंध में मित्रों के विचारों, व्यंग्योक्तियों आदि का चित्रण किया है I डायरी में आर.जी. नामक मित्र का बार-बार उल्लेख किया गया है जिससे पता चलता है कि वे लेखक के घनिष्ठ मित्र हैं, लेकिन वे भी लेखक के ह्रदय पर चोट पहुँचाने से नहीं चूकते I लेखक ने उस मित्र के बारे में लिखा है-“कभी-कभी वे लोग जिन्हें हम अच्छा मित्र मानते हैं, सोच-समझकर ऐसा आघात करते हैं जो ह्रदय में स्थायी रूप से जम जाता है I” (15 जुलाई 1994) हिंदी में साहित्यिक पुरस्कारों की बंदरबाँट कोई नई बात नहीं है I डायरी में आरक्षण और पुरस्कारों की राजनीति और राजेन्द्र यादवी राजनीति का भी अनेक बार उल्लेख मिलता है I मुलायम सिंह यादव सरकार द्वारा किए गए नरसंहार और बर्बर अत्याचारों का जिक्र करते हुए लेखक ने भविष्यवाणी की थी कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अस्तित्व मिट जाएगा जो बाद में सत्य सिद्ध हुई I “मैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की सरकार को नरसंहार पर टिकी सरकार मानता हूँ I कांग्रेस आज जिस दयनीय स्थिति से गुजर रही है इससे स्पष्ट हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में उसका अस्तित्व मिट जाएगा I” (9 सितंबर 1994) भारतीय जनजीवन में सर्वत्र पाखंड का बोलबाला है I सार्वजानिक जीवन में जो भला और भोला दिखता है जरूरी नहीं है कि वह भला ही हो I दोहरे व्यक्तित्व वाले लोगों के व्यवहार से लेखक दुखी हैं I वे अपने आप से प्रश्न करते हैं “जो सार्वजनिक जीवन में बहुत भले होने का प्रभाव देते हैं, निजी जीवन में इतने संकीर्ण क्यों रहते हैं !” (02 जनवरी 1996) देश की राजनैतिक गिरावट और लोगों के नैतिक पतन को देखकर डायरीकार दुखी हैं I भ्रष्टाचार का दीमक देश को खोखला कर रहा है I अब भ्रष्टाचार किसी पार्टी के लिए कोई समस्या नहीं है I कथाकार ने डायरी में सामयिक राजनीति की पतनशीलता को रेखांकित करते हुए लिखा है-“सभी पार्टियाँ भ्रष्ट हैं I बिहार के सत्रह अरब के पशु चारा घोटाला मामले ने और हवाला मामलों ने जनता की आँखें खोल दी हैं I” लेखक ने प्रकाशन जगत की बेईमानियों, प्रकाशकों की चतुर चालों और साहित्यकारों की संकीर्ण मानसिकता का पोस्टमार्टम किया है I कोरोना वायरस ने मानव को गहरा जख्म दिया है I इसे सदी की सबसे बड़ी विश्वमारी कहा गया है I न जाने कितने, कवि, लेखक, गीतकार, चिकित्सक इस महामारी के शिकार हो गए I डायरीकार ने अपनी डायरी में कोरोना महामारी से उत्पन्न संकट का उल्लेख किया है-“महामारी ने लाखों जिंदगियों को असमय विराम दिया I सभी को घरों में कैद कर दिया, लेकिन गरीब क्या करे !” (31 दिसंबर 2020) कोरोना की दूसरी लहर ने तांडव मचा दिया था और लाखों लोगों को असमय अपना शिकार बनाया था I कोरोना महामारी ने वरिष्ठ साहित्यकार श्री बद्री सिंह भाटिया को भी लील लिया था I कथाकार ने लिखा है-“ऑक्सीजन का संकट प्रारंभ से ही बरकरार है I लोगों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे और यदि मिल भी रहे हैं तब इस शर्त पर कि वे अपना ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर आएँगे I मरनेवाले हजारों लोगों में हिंदी साहित्यकारों की बड़ी संख्या है I 24 अप्रैल को मित्र बद्री सिंह भाटिया का जाना हिला गया I” (4 मई 2021) साहित्यकारों में करुणा, मानवता और कोमल भावनाओं की अपेक्षा की जाती है, लेकिन हिंदी के अनेक साहित्यकारों में मानवीय मूल्यों की नितांत कमी है I डायरीकार ने अपनी डायरी में हिंदी के साहित्यकारों की हृदयहीनता और व्यापारिक चालाकियों का अनेक बार उल्लेख किया है I “उस समय मैंने कहा था, कहानी नहीं है, बद्रीसिंह भाटिया पर संस्मरण लिखा है कहो तो भेज दूं I बोले “आप क्या समझते हैं कि बद्रीसिंह भाटिया सरकारी पत्रिका के लिए डिजर्व करते हैं I मैं अवाक ! कुछ कह नहीं पाया, लेकिन लगातार उनकी यह बात दिमाग में हथौड़े की तरह बजती रही I” (12 अगस्त 2021) लगभग एक वर्ष तक किसान आंदोलन की आड़ में देश विरोधी साजिश चल रही थी I तथाकथित किसान हर प्रकार की देश विरोधी हरकतें करते रहे, लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई I इसलिए इन गद्दारों का मनोबल बढ़ता गया जिसकी परिणति 26 जनवरी को लाल किले की अपवित्रता और अराजकता के रूप में हुई I डायरीकार ने लिखा है-“किसान आंदोलन को आज एक सौ एक दिन हो चुके I पंजाब से आए किसान नेता अब कहीं दिखाई नहीं दे रहे I राकेश टिकैत विभिन्न राज्यों में घूमकर किसान पंचायत कर रहे हैं I सरकार कानून वापस न लेकर उसमें संशोधन के लिए तैयार है, जबकि टिकैत वापस लेने के लिए अड़ा हुआ है I यह विशुद्ध राजनीति है जिसे किसान समझ नहीं पा रहे I” (6 मार्च 2021)
“अंकित है जो समय शिला पर” शीर्षक डायरी में वरिष्ठ कथाकार श्री रूपसिंह चंदेल ने अपने समय का दस्तावेज़ प्रस्तुत किया है I बेबाकी और सच्चाई इस डायरी के प्राण तत्व हैं I उन्होंने अपनी डायरी में जिस साहस का परिचय दिया है वह अनुसरण करने योग्य है I इस डायरी में हिंदी के अनेक साहित्यकारों को बेनक़ाब किया गया है I डायरी की भाषा सहज और प्रवाहमयी है I इस डायरी के माध्यम से लेखक के अंतर्मन में प्रवेश कर उनकी लेखन प्रक्रिया से परिचय प्राप्त किया जा सकता है I डायरीकार ने अपनी डायरी में समकालीन जीवन-जगत के घात-प्रतिघात, छल-प्रपंच, सामजिक पाखंड को उजागर किया है I उन्होंने अपने जीवन में घटित छोटी–छोटी घटनाओं का उल्लेख किया है I इन छोटी-छोटी घटनाओं से संघर्ष करने के बाद ही कोई व्यक्ति बड़ा बनता है I जीवनानुभवों से प्रेरित और दैनिक घटनाओं से अनुप्राणित इस डायरी में इतिहास बोलता है, वर्तमान साँसे लेता है और भविष्य आशावाद के पुष्प-पराग बिखेरता है I
पुस्तक-अंकित है जो समय शिला पर (डायरी)
लेखक-श्री रूपसिंह चंदेल
प्रकाशक-इंडिया नेटबुक्स प्रा.लि., नोएडा
प्रकाशन वर्ष-2022
पृष्ठ-146
मूल्य-300/-

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें :1.अरुणाचल का लोकजीवन 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य 3.हिंदी सेवी संस्था कोश 4.राजभाषा विमर्श 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा,विश्वभाषा 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह) 17.मणिपुर : भारत का मणिमुकुट 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति 20.असम : आदिवासी और लोक साहित्य 21.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य 22.पूर्वोत्तर भारत : धर्म और संस्कृति 23.पूर्वोत्तर भारत कोश (तीन खंड) 24.आदिवासी संस्कृति 25.समय होत बलवान (डायरी) 26.समय समर्थ गुरु (डायरी) 27.सिक्किम : लोकजीवन और संस्कृति 28.फूलों का देश नीदरलैंड (यात्रा संस्मरण) I मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]