बाल कविता

बाल कविता – किताबों के शहर में

आओ बच्चो  तुम्हें घुमाएं  किताबों के शहर में।
शब्द फूल बन के  महके खिले  हुए गुलजार में।
ज्ञानवर्धक बातें मिलेंगी  कागज़ पर लिख लेना।
शिक्षा देती मित्र बन के  इन से तुम  सीख लेना।
किताबों में छीपा हुआ है  ज्ञान का  भंडार भरा।
मन को बांध रखती  हैं बच्चो इन में  प्यार भरा।
देख  चौखट किताबों की कितनी सुंदर लग रही।
सजी हुई हैं सलीके से यहाँ मानों मंदिर लग रही।
बैठो चिंतन  करो घड़ी भर बहुत आनंद आएगा।
मोटू पतलू, चिंकू चाचू, पढ़ कर मन को भाएगा।
मनोरंजन किताबें करती  हंसती और रुलाती हैं।
भाव  मनसे  जाग्रत होते, स्वर कंठों  से गाती है।
आजादी के परवानों की  पढ़ लो तुम  कहानियाँ।
भगत सुखदेव राजगुरु की पढ़ लो तुम जवानियाँ।
झांसी की रानी मर्दन करती अंग्रेजों की धार को।
देश से फिर फिरंगी भागे थे मान अपनी  हार को
ठंडक मनको देती किताबें शिखर भरी दुपहर में।
आओ बच्चो  तुम्हें  घुमाएं  किताबों के  शहर में।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995