गीत/नवगीत

दीपाली

कोई तो हमको समझाये, होती कैसी दीपाली।
तेल नदारद दीया गायब, फटी जेब हरदम खाली।।
हँसी नहीं बच्चों के मुख पर, चले सदा माँ की खाँसी।
बापू की आँखों के सपने, रोज चढ़ें शूली फाँसी।।
अभी दशहरा आकर बीता, सीता फिर भी लंका में।
रावण अब भी मरा नहीं है, क्या है राघव – डंका में।।
गिरवी माता का कंगन है, बंधक पत्नी की बाली।
कोई तो हमको समझाये, कैसी होती दीपाली।।

राशन पर सरकारें बनतीं, मत बिकते हैं हाटों में।
संसद की हम बात करें क्या, तन्त्र बँटा है भाटों में।।
ईद गई बकरीद गई अब, तीन तलाक बना मुद्दा।
सवा अरब की आबादी पर, लावारिस दादी-दद्दा।।
मिडिया की कुछ हाल न पूछो, लगे हमें माँ की गाली।
कोई तो हमको समझाये, कैसी होती दीपाली।।

अगर मान लो बात हमारी, दिल को दीप बना डालो।
सत्य धर्म ममता निष्ठा को, मीठा तेल बना डालो।।
नाते रिश्तों की बाती में, स्वाभिमान – पावक भर दो।
जग में उजियारा फैलाये, ऐसी दीपाली कर दो।।
ऐसे दीप जलायें मिलकर, कहीं न हों रातें काली।
कोई तो हमको समझाये, कैसी होती दीपाली।।

— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन