लघुकथा

लघुकथा – ठेकुआ

“तुम्हारी मम्मी छठ की पूजा नहीं करती! क्यों ?” प्रशांत ने कहा।
 “नहीं। मेरे मुहल्ले में कोई भी परिवार छठ व्रत नहीं करता।” राजू ने जवाब दिया।
“तब तो तुमने परसाद भी नहीं खाया होगा ? ठेकुआ भी नहीं।”
  “मम्मी कहती है कि छठ पूजा बड़ी कठिन है।और इसमें खर्च भी बहुत है।”
“चलो मेरे साथ …मेरा घर। तुम्हें ठेकुआ और बाकी प्रसाद मम्मी से दिला दूँगा।” प्रशांत ने कहा।
राजू ने अपनी फटी कमीज की ओर देखा जो थोड़ी मैली भी थी।  “नहीं, गंदे कपड़ों में मैं…।” राजू झिझक रहा था।
 “रुको, मैं गया और आया।तुम्हारे लिए छठ परब का परसाद लेकर आता हूँ।” प्रशांत ने प्रसाद लाने के लिए दौड़ लगाई।
— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]