पुस्तक समीक्षा

स्त्री के जीवन की संघर्ष गाथा- बेबी हालदार की आत्मकथा “आलो-आंधारि”

स्त्री के जीवन की संघर्ष गाथा जो पुरुष प्रधान समाज मे एक सतायी गई महिला के लिए समाज के लिए एक ज्वलंत प्रश्न उपस्थित करता है।और यह प्रश्न है करती है कि क्या पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्त्व नही? क्या वर्तमान समय में स्त्रियों के इस सामाजिक स्थिति मे कोई परिवर्तन आया है?
ऐसे ज्वलंत प्रश्न को उठाने वाली
“आलो आँधारि” शीर्षक” पाठ की लेखिका बेबी हलदार जिसने अपनी आत्मकथा मे यथार्थ की आंच से तपते रेगिस्तान की भयावाह और दर्दनाक कहानी कहती दिखाई देती है।
“आलो आंधारि ” शीर्षक से  कक्षा 11 वीं के हिंदी पाठ मे लेखिका बेबी हालदार की
आत्मकथा जिसके पूरे जीवन की गाथा समाहित है।और उसके जीवन मे जो कष्ट ,विपन्नता,पीड़ा,और संवेदनशीलता है,वह उसके दर्दनाक आत्मकथा का दस्तावेज है। जिसको पढ़ने के बाद समाज की दुरुपता,समाज की वास्तविक सच्चाई,समाज की कुरीतियाँ और समाज मे स्त्री जीवन की सच्ची कहानी उजागर होती है।बेबी हालदार की आत्मकथा को पढ़ने के बाद उसके सामाजिक जीवन की यथार्थता समझ मे आती है की वह कैसे सामाज मे अपने आप को स्थापित करने के लिए लोगों से कितना संघर्ष,किया। कैसे अपने पति से अलग होने के बाद वह सामाज के लोंगो से नाना प्रकार से बेवजह ताने,फबतियाँ,और व्यंग्य को झेला और सहा।
उसने कितना कष्ट झेला,कितना पीड़ा सही।
उसके संघर्ष की गाथा वहाँ से शुरु होती है जब उसका विवाह उसके दुगने उम्र वाले 26
साल के आदमी से कर दिया जाता है।जबकि इस समय बेबी हालदार की उम्र मात्र 13 साल थी।और उसको बिच मे ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसका कारण यह था की उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी।
इसके बाद शुरु होता है उसके जीवन मे संघर्ष।तीन-तीन बच्चों की मां,, आये दिन उसका पति उसे परेशान करने लगा।उसको मारने पीटने लगा।इस प्रकार वह अपने पति की ज्यादतियों से परेशान होकर अपने तीन बच्चों सहित आपने शहर दुर्गापुर को छोड़ फरीदाबाद आती है।
और किराए की मकान तलाश करते हुए तातुश अर्थात मुंशीप्रेम चंद के पोते प्रबोध दा के घर पहुंचती है।जहाँ उसे आश्रय मिलता है।तातुश उसे बेटी की तरह रखते हैं।और उसके बच्चों, की जिम्मेदारी लेते हुए
पालन पोषण से लेकर पढ़ाने लिखाने के लिए तैयार हो जाते हैं
और फिर शुरु होता बेबी हालदार का नया जीवन।जीवन मे नया मोड़ आता है।घर मे नौकरानी तरह सारा काम करने वाली बेबी हालदार एक दिन तातुश के लाइब्रेरी के पुस्तकों मे जमे धूलों को साफ करते हुए उसको गौर से देखते हुए मिली।अचानक
तातुश आते हैं।और उसको पूछकर उसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए और भी पुस्तकों की व्यवस्था करते हैं। सारे पुस्तकों को पढ़कर वो प्रेरित होती हैं।और क्या लिखूंगी ?कहने पर तातुश ने अपने जीवन के कड़वे सच्चे अनुभव को लिखने की बात करते हैं।और फिर पुरा जीवन गाथा एक आत्मकथा के रूप मे बेबी हालदार लिख देती हैं।फिर उसको प्रबोध दा ने पुस्तक के रूप में प्रकाशन करा देते हैं।फिर उस प्राकाशित पुस्तक को लाकर देते हैं।
इसको पाकर वह आश्चर्य चकित हो जाती हैं।
इसको पढ़कर पाठक गण उनको बांगला की लेखिका आशा पूर्णा देवी की संज्ञा दे देते हैं।जिनकी पुस्तक मे एक तरफ निम्न स्तर का टूटता,बिखरता परिवार हैं,तो दूसरी तरफ दुख,पीड़ा,परेशानी,संघर्ष है।और अपने परिवार के सुखद भविष्य की कल्पना।
ऐसे महान लेखिका आज भी वही काम करते हुए जीवन मे संघर्ष करने का संदेश मानव समाज देती नजर आती हैं।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578