नव वर्ष आया
नव वर्ष आया नवग्रह नवरात्रि पार करके ।
फूल खिला नव प्रभात शुभ रात्रि पार करके ।।
नव वर्ष आया नौ पर्वत श्रृंखला पार करके ।
फूल खिला कांटों के श्रृंखला पार करके।।
स्वयं सुंदरी आई सोलह श्रृंगार करके ।
स्वयं सेवक आया सेवा भाव हजार करके ।।
सुंदर सुंदरी की अटूट मोहब्बत प्यार करके ।
यौवन युग आया इक्कीस बाईस पार करके ।।
नव वर्ष आया नवग्रह नवरात्रि पार करके ।
फूल खिला कलियों से शुभ रात्रि पार करके ।।
विद्यार्थी पढ़ रहा है बारह खड़ी ,
किसान कह रहा है बारह घड़ी ।
मजदूर काम पर है बारह घड़ी ,
हम हैं यहां बने बाराखंभा बारा टूटी।।
नव वर्ष आया नौ पर्वत नौ श्रृंखला पार करके ।
फूल खिला कांटो के श्रृंखला पार करके।।
नव वर्ष आया बारह घड़ी बारह महीना पार करके ।
ऋतु परिवर्तन देश परिवर्तन के सीमा पार करके ।।
नवयुग स्वच्छ वातावरण के चाहना अपार करके ।
धड़कन की अटूट स्पंदन के सपना संवार करके ।।
नव वर्ष आया नवग्रह नवरात्रि पार करके ।
फूल खिला नवप्रभात शुभरात्रि पार करके ।।
— मनोज शाह ‘मानस’